ब्लौग सेतु....

14 अप्रैल 2014

काश कुछ ऐसा हो

काश कुछ ऐसा हो कि 
हम जो कह न पायें वो बात समझ जाओ
हम जो लिख न पायें वो जज्बात समझ जाओ
और जब पिघले ये दूरी
तुम वो रास्ता वो हालात समझ जाओ !

काश कुछ ऐसा हो कि
हम जो छोड़ न पायें वो निशाँ समझ जाओ
हम जो साथ न लायें वो कारवाँ समझ जाओ
मजबूरी दुनियादारी के बीच फसी
तुम वो अनकही दास्ताँ समझ जाओ !

काश कुछ ऐसा हो कि
हम जो देख न पायें वो ख्वाब समझ जाओ
हम जो समझ न पायें वो हिसाब समझ जाओ
बेअसर होती अपनी कहानी
तुम वो ज़िन्दगी की किताब समझ जाओ

काश कुछ ऐसा हो  कि
हम जो ला न पाये वो सौगात समझ जाओ
हम जो बचा न पाये वो आघात समझ जाओ
भीड़ में भटकती है परछाई अपनी
तुम वो साज़िश करती कायनात समझ जाओ !

3 टिप्‍पणियां:

  1. -सुंदर रचना...
    आपने लिखा....
    मैंने भी पढ़ा...
    हमारा प्रयास हैं कि इसे सभी पढ़ें...
    इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना...
    दिनांक 17/04/ 2014 की
    नयी पुरानी हलचल [हिंदी ब्लौग का एकमंच] पर कुछ पंखतियों के साथ लिंक की जा रही है...
    आप भी आना...औरों को बतलाना...हलचल में और भी बहुत कुछ है...
    हलचल में सभी का स्वागत है...

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