tag:blogger.com,1999:blog-8525728233055104202.post6452067976191025617..comments2023-12-31T11:13:55.877+05:30Comments on कविता मंच: विचार, संस्कार और रस [ दो ] +रमेशराजkuldeep thakurhttp://www.blogger.com/profile/11644120586184800153noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-8525728233055104202.post-55330766238987202152019-03-25T14:54:23.895+05:302019-03-25T14:54:23.895+05:30March 2019 at 02:13
नारी सौंदर्य पर जिज्ञासा शुरु ...March 2019 at 02:13<br />नारी सौंदर्य पर जिज्ञासा शुरु से रही है, बस शील और लंपटता के बीच महीन रेखा को पहचानना चाहिए। <br />जैसे -*कनक छरी सी कामिनी काहे को कटी खीन!*<br />*कटि को कंचन काटि विधि, कुचन मध्य धरि दीन!*<br />यह मांसल नजरिया है! <br />संतुलित नजरिया यह है कि <br />*कनक छरी...... !<br />*विधि सजायो घर नये, वर्त पयोधर पीन!*<br />यानी विधाता ने अपने *एकोअहम् बहुस्याम :* के महत् उद्देश्य की पूर्ति के लिए ही नारी के युवा तन में निवास कर सजाया है और वर्त (जंघा-नितंब) तथा स्तनों को पीन(पुष्ट) किया है! <br /><br />इसके दो सवैया छंद हैं-़<br />(१) -<br />ढोल दियाँ तन आन बसै विधि बोल कहै यह कीन तियारी! <br />पैर पसारिकै पौढन आस समेट धरि कटि खीन पथारी! <br />पीन पयोधर भेख उठी जद गोद-निवास की हूक हमारी!<br />झोंक दियो मधुमास यहीं सुन भृंग करी 'यह भूख' तुम्हारी! <br /><br />(२)<br />मंगल को अरधांग जुडा नटराज नचावन को रंग लियो है! <br />फूल बन्यौ मकरंद सजा, जिन चूम लजावन भृंग पियो है! <br />अंग अटारि अनंग अड्यौ इन भूत भगावन चंग दियो है! <br />जंग ठन्यौ मनभावन यै उन आप बढावन ढंग कियो है!*<br /><br />पाठकों की जिज्ञासा होने पर इनके मौलिक-अप्रकाशित छंदों का भावार्थ दिया जायेगा! <br />धन्यवाद! <br />मंगलाराम विश्नोई <br />Email - manglaram744@gmail.com<br />25-3-19ManglaRam Bishnoiehttps://www.blogger.com/profile/14579927640702217057noreply@blogger.com