पता नहीं क्यों
पलकों मे बंद तुम्हारी छवि
मेरी आँखों में चुभ सी क्यों जाती है ?
पता नहीं क्यों
तुमसे जुड़ी हर बात
छलावे के प्रतिमानों की याद क्यों दिला जाती है ?
पता नहीं क्यों
तुमसे जुड़ी हर याद
गहराई तक अंतर को खरोंच क्यों जाती है ?
पता नहीं क्यों
तुमसे मिलने के बाद
आस्था अपना औचित्य खो क्यों बैठी है ?
पता नहीं क्यों
तुमसे मिले हर अनुभव के बाद
विश्वास की परिभाषा बदली सी क्यों लगती है ?
पता नहीं क्यों
तुमसे बिछुड़ने के बाद
हार की टीस की जगह जीत का दर्द क्यों सालता है ?
पता नहीं क्यों
तुम्हें देखने की तीव्र लालसा के बाद भी
आँखे खोलने से मन क्यों डरता है ?
पता नहीं क्यों
सालों पहले तुम्हारे दिये ज़ख्म
पर्त दर पर्त आज तक हरे से क्यों लगते हैं ?
पता नहीं क्यों
जीवन के सारे अनुत्तरित प्रश्न
उम्र के इस मुकाम पर आकर भी
अनसुलझे ही क्यों रह जाते हैं ?
पता नहीं क्यों ....!!
लेखक परिचय -- साधना वैद
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना |
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बृहस्पतिवार (24-07-2014) को "अपना ख्याल रखना.." {चर्चामंच - 1684} पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार संजय जी मेरी रचना को कविता मंच तक पहुँचाने के लिये !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शास्त्री जी ! आभार आपका !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर | "पता नहीं क्यों "......
जवाब देंहटाएंकर्मफल |
अनुभूति : वाह !क्या विचार है !
दिल को छू हर एक पंक्ति....
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति , संजय भाई धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज शुक्रवार २५ जुलाई २०१४ की बुलेटिन -- कुछ याद उन्हें भी कर लें– ब्लॉग बुलेटिन -- में आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सेंगर जी ! आभार आपका !
हटाएंगहराई तक जाती है यह टीस। दो दो बार क्यों .....
जवाब देंहटाएंसुन्दर !!
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