मुहब्बतों के मौसम में
यूँ तूफानों का आना क्यों |
बातों हों तो प्यार की ये
दर्द भरा अफ़साना क्यों ||
मैं सुलझाऊं जुल्फ़ें तेरी
आ मोतियन से माँग भरूँ |
बैठ जा नज़रों के आगे
शर्मो-हया का बहाना क्यों ||
बरसों से बसेरा दिल है
तेरा इस दीवाने-यार का |
पूछ रहे गैरों से जाकर मन
में बसा ठिकाना क्यों ||
रिमझिम करते आए बादल सावन
ने रंग घोला है |
मुहब्बतों की बारिशें हैं
जलता मगर जमाना क्यों ||
कहले जो कुछ कहना मुझसे
मैं तेरी सब सुन लूँगा |
मुहब्बत के झगड़ों की
बातें गैरों को बतलाना क्यों ||
आँखों में उमड़े हैं अरमां
झिलमिल करते सपने हैं |
उड़ना हैं अंबर से आगे
आँधी से घबराना क्यों ||
...............................................© केशरीलाल स्वामी “केशव”
bahoot khoob!!
जवाब देंहटाएं.. कमाल का शब्द संयोजन.... लाजवाब रचना...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
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