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22 दिसंबर 2014

पीड़ा -- आशा सक्सेना


जीवन के अहम् मोड़ पर
लिए मन में दुविधाएंअनेक
सौन्दर्य प्रेम में पूरी  डूबी
सूरत सीरत खोज रही |
एक विचार एक कल्पना
 जिससे बाहर ना आ पाती
डूबती उतराती उसी में
कल्पना की मूरत खोजती |
उसका वर कैसा हो
किसी ने जानना न चाहा
पैसा प्रधान समाज ने
उसे पहचानना नहीं चाहा |
कहने को उत्थान हुआ
नारी  का महत्त्व बढ़ गया
पर इतने अहम मुद्दे पर
उससे पूछा तक न गया  |
विवाह उसे करना था
निर्णय लिया परिवार ने
सारे अरमान जल गए
हवनकुंड की अग्नि में |
नया घर नया परिवेश
धनधान्य की कमीं न थी
पर वर ऐसा न पाया
जिसकी कल्पना की थी |
भारत में जन्मीं थी
संस्कारों से बंधी थी
धीरे धीरे  रच बस गई
ससुराल के संसार में |
कभी कभी मन में
एक हूक सी उठती
प्रश्न सन्मुख होता
क्या यही कल्पना थी |
अब मन ने नई उड़ान भरी
हुई व्यस्त सृजन करने में
खोजती सौन्दर्य अपने कृतित्व में
हुई सम्पूर्ण खुद ही में !

लेखक परिचय - आशा सक्सेना


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