भारत माता के लाल थे वे,
आजादी की थी चाह बड़ी,
भारत माता के शान में बस,
चल निकले मुश्किल राह बड़ी ।
स्वाधीनता के दीवाने थे,
गौरों का दम जो निकाला था,
नस नस में थी आग दौड़ती,
खुद को आँधी में पाला था ।
इंकलाब की आग देश में,
खुद जलकर भी लगाया था,
मूँद कर आँखें सोये थे जो,
फोड़ कर बम यूँ जगाया था ।
सच्चे सपूत थे माता के,
अपना सुख दुःख सब भूल गए,
माता की बेड़ी तोड़ने को,
हँसते फांसी में झूल गए ।
वे बड़े अमर बलिदानी थे,
फंदे को जिसने चूमा था,
मेरा रंग दे बसंती चोला पर,
मरते मरते भी झूमा था ।
आदर्श बने लाखों युवा के,
नाम है जब तक है गगन,
सिंह भगत, सुखदेव, गुरु,
है आपको शत-शत नमन ।
भगतसिंह,सुखदेव और राजगुरु के शहादत दिवस पर शत-शत नमन ।
-प्रदीप कुमार साहनी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
स्वागत है आप का इस ब्लौग पर, ये रचना कैसी लगी? टिप्पणी द्वारा अवगत कराएं...