कभी दरिया कभी सागर से लगते हैं
नैन पतझड़ से जब बरसते हैं ।
नैन पतझड़ से जब बरसते हैं ।
चश्म सजते हैं गुलाबी होकर
तुमको बेरंग बना बैठे हैं ।
तुमको बेरंग बना बैठे हैं ।
रात आई है कितनी बन ठन के
चराग़ बिन जले ही जलते हैं ।
चराग़ बिन जले ही जलते हैं ।
अलाव, सिसकियाँ खयालों की
जिनको ख़ामोशी में समोते हैं ।
जिनको ख़ामोशी में समोते हैं ।
उनके गेसू में फूल टेसू के
आग जंगल की आज लगते हैं ।
आग जंगल की आज लगते हैं ।
जय मां हाटेशवरी...
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दिनांक 06/09/2016 को
पांच लिंकों का आनंद
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इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।
आभार कुलदीप जी.
हटाएंआभार कुलदीप जी.
हटाएंवाह..
जवाब देंहटाएंक्या बात है
सादर
धन्यवाद् यशोदा जी आपके बहुमूल्य समय एवम प्रोत्साहन के लिए.
हटाएंबहुत खूब ... अच्छे हैं शेर आपकी ग़ज़ल के ..
जवाब देंहटाएंबस कुछ ख़याल हैं दिल के आ गए.. आपके समय के लिए आपका धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबस कुछ ख़याल हैं दिल के आ गए.. आपके समय के लिए आपका धन्यवाद
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