आसमान को और झुकना..
आसमान को और झुकना पड़ेगा
न जानू फिज़ाओ की आगोश की बाते..
ख्वाहिशो की मुरादो को पूरा करना पड़ेगा
छोड़ो आज़ खोने की बाते
पाने के हुनर की जिक्र करना पड़ेगा
जहर न बन जाउ पीते-पीते
अमृत की भी आस करना पड़ेगा
सहरा में सराबो से वास्ता सही..
अब्र की आस करना पड़ेगा
सरसब्ज़ की तलाश में
सदमात को भी वाज़िब करना पड़ेगा..
©पम्मी सिंह
©पम्मी सिंह
(सहरा-रेगिस्तान ,सराबो-जल भ्रम,सदमात-आघात)
सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंजी,आभार.
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (11-09-2016) को "प्रयोग बढ़ा है हिंदी का, लेकिन..." (चर्चा अंक-2462) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सूचना के लिए धन्यवाद,सर.
हटाएंजी,रचना के चयन हेतु धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंबढ़िया
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