‘ विरोधरस ‘---13.
विरोध-रस
के आश्रयों के अनुभाव
+रमेशराज
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हिंदी काव्य की नूतन विधा तेवरी के पात्र जिनमें
विरोध-रस की निष्पत्ति होती है,
ऐसे पात्र हैं, जो
इसके आलंबनों के दमन, उत्पीड़न
के तरह-तरह से शिकार हैं। एक तरफ यदि
इनकी आंखों में अत्याचारियों का खौफ है तो दूसरी ओर अत्याचारियों के प्रति अंगार भी
हैं। ये कभी मुरझाये हुए हैं तो कभी झल्लाए-तमतमाए
और तिलमिलाए हुए।
विरोध-रस
के आश्रयों के भीतर स्थायी भाव ‘आक्रोश’
पूरे जोश के साथ शत्रु वर्ग को अपशब्दों में कोस रहा
होता है तो कहीं ललकार रहा होता है तो कहीं खलों के निर्मूल विनाश की कामनाएं कर रहा
होता है।
तेवरी में विरोध-रस
के आश्रयों के अनुभाव उस घाव की मार्मिक कथाएं हैं, जिनमें
आहें हैं-कराहें हैं
संताप क्षोभ विषाद आवेश-आवेग और उन्माद
से भरी संवेदनाएं हैं-
मौन साधे बैठा है होंठ-होंठ
और अब,
आंख-आंख
द्रौपदी है, तेवरी की
बात कर।
-अरुण लहरी,
इतिहास घायल है [तेवरी-संग्रह
] पृ. 26
तेवरी काव्य में वर्णित विरोध-रस
के आश्रयों के अनुभावों का विश्लेषण करें तो निम्न प्रकार के हैं-
अपशब्द बोलना-
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जब कोई किसी को सताये,
किसी की मजबूरी पर ठहाके लगाए,
अपमानित करे, अहंकारपूर्ण
कटूक्तियों से कोमल मन में विष भरे तो पीडि़त व्यक्ति क्या करेगा?
वह गालियां देगा-
सब ही आदमखोर यहां हैं,
डाकू, तस्कर,
चोर यहां हैं।
-कुमार मणि,
कबीर जिंदा है [तेवरी-संग्रह
] पृ. 37
खुदगर्जों, मक्कारों
को कुर्सी मिलती ,
कैसा चयन हुआ है मेरे देश में ।
-ज्ञानेंद्र
साज़, अभी जुबां कटी नहीं [तेवरी-संग्रह
] पृ. 48
सताया गया व्यक्ति इस घिनौने सिस्टम के गम को यूं
व्यक्त करेगा----
देश यहां के सम्राटों ने लूट लिया,
सत्ताधारी कुछ भाटों ने लूट दिया।
-अरुण लहरी,
कबीर जिंदा है [तेवरी-संग्रह
] पृ65
लूट लिया करते थे पहले धन-दौलत,
इज्जत भी अब करें कसाई टुकड़े-टुकड़े।
-राजेश मेहरोत्रा,
कबीर जिंदा है [तेवरी-संग्रह
] पृ.4
तड़पना-
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नदी किनारे तड़प रही मछली बेचारी,
पानी से भर मरुथल देंगे बातें झूठी।
-राजेश मेहरोत्रा,
कबीर जिंदा है [तेवरी-संग्रह
] पृ.9
मुट्ठियों को भींचना-
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मुट्ठियों को भींचता वो स्वप्न में,
आंख खुलने पर मगर लाचार है।
-गिरिमोहन
गुरु, कबीर जिंदा है [तेवरी-संग्रह
] पृ.23
भयग्रस्त हो जाना-
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रातों को तू ख्वाब में चिल्लायेगा साँप,
लोगों के व्यक्तित्व में चंदन-वन
मत खोज।
-रमेशराज,
इतिहास घायल है [तेवरी-संग्रह
] पृ.43
मति फिर जाना---
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तर्क की उम्मीद फिर क्या कीजिए,
आदमी जब राशिफल होता गया।
-योगेंद्र
शर्मा, इतिहास घायल है [तेवरी-संग्रह
] पृ.39
आंखों से रंगीन सपनों का मर जाना-
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दर्दों को काटेंगे सारी उम्र हम,
बो गया है वो फसल वातावरण।
मर गये आंखों के सपने जब कभी,
हो गया तब-तब
तरल वातावरण।
-गिरीश गौरव,
इतिहास घायल है [तेवरी-संग्रह
] पृ.36
सिसकियां भरना-
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जो विदूषक मंच पर हंसता रहा,
सिसकियां भरता वही नेपथ्य में।
-दर्शन बेजार,
इतिहास घायल है [तेवरी-संग्रह
] पृ.18
चट्टान जैसा सख्त हो जाना-
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फूल ने जब बात की आक्रोश की,
पांखुरी चट्टान जैसी हो गयी।
-गजेंद्र बेबस,
इतिहास घायल है [तेवरी-संग्रह
] पृ.16
सुबकना-
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सिर्फ सुबकती रहती हैं रूहें जिसमें,
देखा है वो आलम भी अब तो हमने।
-दर्शन बेजार,
एक प्रहारः लगातार [तेवरी-संग्रह
] पृ. 60
थर-थर
कांपना-
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कांपता थर-थर
यहां हर आदमी,
घूमता कातिल यहां स्वाधीन क्यों?
-दर्शन बेजार,
एक प्रहारःलगातार [तेवरी-संग्रह
] पृ.46
विक्षिप्त-सा
हो जाना-
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गांव-गांव
विक्षिप्त ‘निराला’
घूम रहा,
दलबदलू जा कलम मिली दरबारों से।
-दर्शन बेजार,
एक प्रहारः लगातार [तेवरी-संग्रह
] पृ.54
आग-सा
दहक उठना-
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आप अब ‘बेजार’
से मिल लें जरा,
आग से कुछ रू-ब-रू
हो जाएंगे।
-दर्शन बेजार,
एक प्रहारः लगातार [तेवरी-संग्रह
] पृ.48
कृशकाय हो जाना-
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भूख की ऐसी फसल घर-घर
उगी,
पेट को छूने लगी लो पसलियां।
-दर्शन बेजार,
एक प्रहारः लगातार [तेवरी-संग्रह
] पृ.47
कलेजा मुंह तक आना---
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साथियो! आकाश
में कैसा अँधेरा छा गया,
वो उठी काली घटा, मुंह
को कलेजा आ गया।
-दर्शन बेजार,
एक प्रहारः लगातार [तेवरी-संग्रह
] पृ.45
आशंका व्यक्त करना-
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पुरस्कार-हित
बिकी कलम, अब क्या होगा?
भाटों की है जेब गरम,
अब क्या होगा?
-दर्शन बेजार,
एक प्रहारः लगातार [तेवरी-संग्रह
] पृ.39
त्रासद परिस्थितियों की चर्चा करना-
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किस कदर हिंसक हुआ है आदमी,
लोग आये हैं बताने गांव के।
-दर्शन बेजार,
एक प्रहारः लगातार [तेवरी-संग्रह
] पृ.37
कैसा चलन हुआ है मेरे देश का,
गौरव रेहन हुआ है मेरे देश का।
-ज्ञानेंद्र
साज़, अभी जुबां कटी नहीं [तेवरी-संग्रह
] पृ. 48
फिर यहां ‘जयचंद’
पैदा हो गये,
‘मीरजाफर’
जिन पै शैदा हो गये।
मंदिरों की सभ्यता तो देखिए,
संत भी गुण्डे या दादा हो गये।
-दर्शन बेजार,
एक प्रहारः लगातार [तेवरी-संग्रह
] पृ.35
निरंतर चिंताग्रस्त रहना---
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जिंदगी दुश्वार है अब रामजी,
हर कोई लाचार है अब रामजी!
-गिरीश गौरव, इतिहास
घायल है [तेवरी-संग्रह ]
पृ.34
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+रमेशराज की पुस्तक ‘ विरोधरस ’ से
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+रमेशराज, 15/109, ईसानगर, अलीगढ़-202001
मो.-9634551630
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