‘ विरोधरस ‘---15.
विरोधरस की
पहचान
+रमेशराज
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विरोध-रस
का स्थायी भाव ‘आक्रोश’
है। रसों के आदि आचार्यों ने जो रसों के कई स्थायी भाव
गिनाये हैं उनमें से कई स्थायी भाव विरोध-रस
को परिपक्व अवस्था में पहुंचाने के लिए संचारी भाव की तरह कार्य करते हैं।
भय को लीजिए-
भय, भयानक
रस की निष्पत्ति कराता है लेकिन जब अत्याचार-शोषण-उत्पीड़न
को सहने वाला प्राणी महसूस करता है कि अगर हम यूं ही डरे-सहमे-दब्बू
और कायर बने रहे तो हालात और बद से बदतर होंगे। अतः वह इस भय से बाहर निकलता है और
कहता है-
सत्य के प्रति और भी होंगे मुखर?
आप कितने भी हमें डर दीजिए।
-दर्शन बेजार,
देश खण्डित हो न जाए [तेवरी-संग्रह
] पृ. 52
करुणरस को लीजिये-
स्थायी भाव शोक करुण-रस
में उद्बोधित होता है, किन्तु विरोध-रस
के अंतर्गत स्थायी भाव शोक, करुणा के
दृश्य संचारी भाव की तरह उपस्थित करते हुए आक्रोश में घनीभूत होता है और स्थायी भाव
बन जाता है, जो ‘विरोध-रस’
के माध्यम से अनुभावित होता है।
स्थायी भाव शोक स्थायी भाव आक्रोश में कैसे बदलता है?
इसे एक तेवरी की तीन तेवरों के माध्यम से देखिए।
इसके प्रथम व द्वितीय तेवर में लाज को लूटे जाने की खबर में कारुणिक दृश्य उपस्थित
हैं, लेकिन दुर्योध्न को दुष्ट बताकर
आक्रोश के घनीभूत होने का प्रमाण भी मौजूद है तो तीसरे तेवर में करुणा से उत्पन करने
वाला स्थायी भाव शोक विरोध में सघन होता है-
फिर किसी अखबार ने छापी खबर,
लाज को लूटा गया है रात-भर।
दुष्ट दुर्योधन बिठाने फिर लगा,
सभ्यता को अपनी नंगी जांघ पर।
आबरू कोई न अब बेजार हो,
नौजवानो! तुम
उठो ललकार कर।
-दर्शन बेजार,
एक प्रहारः लगातार [तेवरी-संग्रह
] पृ. 34
शोकग्रस्त व्यक्ति क्रन्दन और प्रलाप भले ही करता
है किन्तु यही शोक जब आक्रोश में तब्दील होता है तो क्रान्ति का पैगाम बन जाता है।
विरोध की रसात्मक अनुभूति का एक उदाहरण और देखिए।
लिख रहा हूं दर्द की स्याही से जिनको,
क्रान्ति की बू आयेगी कल उन खतों में।
-दर्शन बेजार,
एक प्रहारः लगातार [तेवरी-संग्रह
] पृ. 49
क्रोध और आक्रोश में अन्तर
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क्रोध और आक्रोश में अन्तर यह है कि क्रोधित मनुष्य
शत्रुपक्ष का विनाश करता है जबकि आक्रोशित व्यक्ति उसके विनाश की केवल कामनाएं करता
है।
रौद्रता में रक्तपात होता है,
जबकि विरोध, जो
कुछ गलत घटित हो रहा है उसे बदलने की एक वैचारिक प्रक्रिया है।
क्रोध अंधा होता है जबकि आक्रोश में मनुष्य अपना
विवेक नहीं खोता। विरोध हिंसा का न तो पर्याय है, और
न कोई हिंसात्मक कार्यवाही।
विरोध के रसात्मक आवेग में क्रोध से उत्पन्न हिंसा
के विरुद्ध कवि का बयान देखिये -
देश की तब क्या नियति रह जायेगी,
शेष जब हिंसक प्रवृत्ति रह जायेगी।
-दर्शन बेजार,
एक प्रहारः लगातार [तेवरी-संग्रह
] पृ. 43
विरोध-रस
का परिदर्शन कराने वाली विधा तेवरी के आश्रयों में अहंकारी-साम्राज्यवादी
हिंसक आलंबनों के प्रति विरोध का स्वरूप दृष्टव्य है-
विजय-पताका
भाई तुम कितनी ही फहरा दो,
वांछित फल पाया है किसने बन्धु समर में।
-राजेश मेहरोत्रा,
कबीर जिन्दा है [तेवरी-संग्रह
] पृ. 15
सच तो यह है कि क्रोध को विनाश की लीला से बचाने
और उसे एक सार्थक दिशा में मोड़ने का नाम विरोध है-
बस्ती-बस्ती
नगरी-नगरी गूंज रही यह बोली,
अब न खेल पायेगा कोई यहां खून की होली।
अब इतिहास रचा जायेगा फुटपाथों की खातिर,
खुशियां से भरनी है हमको अब जनता की झोली।
-डॉ.
एन.सिंह,
कबीर जिन्दा है [तेवरी-संग्रह
] पृ. 31
|| रचनात्मक
पहल का नाम विरोध ||
शोषण-अत्याचार-विहीन
समाज की स्थापना हेतु एक रचनात्मक पहल का नाम विरोध है जो अपने रसात्मक रूप में इस
प्रकार परिलक्षित होता है-
जुल्म की दीवार ढाना चाहता हूं,
इक नया संसार लाना चाहता हूं।
सांस भी लेना यहां मुश्किल हुआ,
इस व्यवस्था को हटाना चाहता हूं।
|| दमन से विरोध
का जन्म ||
घिनौनी-शोषक-दमनकारी
व्यवस्था की पीर जब तीर-सी चुभने
लगती है तो दमन से विरोध का जन्म होता है। विरोध का बोध उस हर अवरोध का खत्म करता है
जो कान्ति अर्थात् व्यवस्था परिवर्तन में बाधक होता है-
कौन कर देगा हमें गुमराह तब,
रुढि़यों में हम अगर जकड़े न हों।
हो सके तो अब उन्हें दुत्कारिए,
रोशनी का हाथ जो पकड़े न हों।
-दर्शन बेजार,
देख खण्डित हो न जाए [तेवरी-संग्रह
] पृ. 55
|| विरोध में
सात्विक प्रेम को जिन्दा रखने का जयघोष ||
विरोध-रस
की विशेषता ही यह है कि विरोध में सात्विक प्रेम को जिन्दा रखने का जयघोष परिलक्षित
होता है-
बांटनी चाही अगर धरती हमारी,
खाक में मिल जाएगी हस्ती तुम्हारी।
सिर्फ नफरत में जिये जो,
वे सुनें अब,
प्यार का हमने किया जयघोष जारी।
-दर्शन बेजार, देख
खण्डित हो न जाए [तेवरी-संग्रह ]
पृ. 44
कल के भारत की तामीर करनी अगर,
कोई दुश्मन बचे ना, यही
फर्ज है।
ब्रह्मदेव शर्मा [अप्रकाशित]
‘विरोध-रस’,
विद्वेष, बैर,
घृणा को मिटाये जाने का एक संकल्प है---
हम नहीं आदी रहे विद्वेष के,
प्रेम को ‘बेजार’
ने पूरा फकत।
-दर्शन बेजार, देख
खण्डित हो न जाए [तेवरी-संग्रह ]
पृ. 32
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+रमेशराज की पुस्तक ‘ विरोधरस ’ से
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+रमेशराज, 15/109, ईसानगर, अलीगढ़-202001
मो.-9634551630
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