एक दिन इस प्रतिस्पर्धा का अंत हो जायेगा।
एक दिन तू अंतहीन निद्रा में सो जायेगा।।
बहुत परिश्रम किया है तुमने ने जिसे पाने में।
एक दिन वो सब इस आभास मे खो जायेगा।।
अचेत पड़ा होगा तू इस धरा की गोद मे।
तब कोई आकर तेरे शव पर रो जायेगा।।
दुर्गंध बहुत आयेगी तब तेरे शुभचिंतक को भी।
तेरे सिरहाने कुछ अगरबत्तिया बो जायेगा।।
घृणा बहुत है तेरे लिये जिनके भी अंतर्मन मे ।
एक दिन स्नेह ही होगा तेरे दर जो जायेगा।।
जल्दी होगी लोगो को तेरे अंतिम संस्कार मे।
अश्रुओं का एक झुंड तेरे शव को धो जायेगा।।
जन्म मिला है जिसको भी इस दुनिया मै देख।
एक दिन निश्चय ही इस धरती से वो जायेगा।।
अभिमान क्या करना 'मित्रा' नश्वर शरीर पर।
एक दिन आग से लिपट कर राख हो जायेगा।।
. ---- हिमांशु मित्रा 'रवि' ----
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
स्वागत है आप का इस ब्लौग पर, ये रचना कैसी लगी? टिप्पणी द्वारा अवगत कराएं...