माननीया /माननीय सक्षम अधिकारी महोदया / महोदय ,
महानगर पालिक निगम / लोक निर्माण विभाग
सदाबहार नगर , नई दिल्ली 1100 **,भारत
बिषय: सूखा पेड़ काटने हेतु आवेदन
महोदया / महोदय,
सविनय निवेदन है कि हमारी कॉलोनी (जोकि पॉश कॉलोनी है ) की मुख्य सड़क के किनारे उत्तर से दक्षिण की ओर (ब्लॉक - ए ) जाते हुए दाहिनी ओर मकान क्रमांक ए -125 के बाहर एक बहुत पुराना पेड़ सूख गया है। अब यह पेड़ कॉलोनीवासियों,वाहनों ,मकानों ,बिजली के तारों ,राहगीरों,पशुओं आदि के लिए ख़तरा बन चुका है।
आँधी-तूफ़ान में............................................................................................................................ .............................................................................................................................................................
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कृपया जनहित में शीघ्र फैसला लेने की कृपा करें। किसी हादसे का इंतज़ार न करें।
सधन्यवाद।
दिनांक : 28 जुलाई 2017
आवेदक
समस्त ग्रीन पार्क एन्क्लेव निवासी
संलग्न - 1. सूखे पेड़ के छायाचित्र -4
2. स्थानीय विधायक की अनुशंसा
3.स्थानीय निगम पार्षद की अनुशंसा
4.आर डब्ल्यू ए अध्यक्ष की अनुशंसा
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एक दिन
तेज़ हवा बही
सड़ा सूखा पेड़ की
छाल का टुकड़ा
छायाविहीन
सूखे शजर
के नीचे खड़ी
लग्ज़री-कार की
छत पर आ गिरा
नुकसान नहीं हुआ
आवाज़ सुनकर
हुज़ूम आ घिरा।
लोगों ने सूखे पेड़ को
नीचे से ऊपर तक घूरा
किसी ने कहा -
इसका तो हो
चुका समय पूरा
कार-मालिक के घर में
चार और महँगी कारें हैं
सबकी अपनी-अपनी कारें हैं
चोटिल चॉकलेटी रंग की
उपेक्षित कार के लिए
घर में जगह की तंगी है
शहरों में भौतिकता पसरी है
सहेजते हैं जो चीज़ महँगी है।
कॉलोनीवासियों
को कर लिया एकत्र
चतुर कार- मालिक ने
सूखे पेड़ को कटवाने का
पारित करा लिया प्रस्ताव
अपनी-अपनी राय देते
सयाने ख़ूब खा रहे थे भाव।
आवेदन लिखने
की बारी आयी
"क" बोला -
आजकल हिंदी
बहुत है चर्चा में
समझ नहीं पाएंगे
अधिकारी क्या
लिखा है पर्चा में
"ख" बोला -
अर्ज़ी का मज़मून
समझ नहीं आता है जब
सरकारी अमला करता है
कार्यवाई अति शीघ्र तब
"ग" बोला -
हिंदी में लिखेगा कौन ?
"घ" बोला -
व्हाट्सएप पर
मेसेज़ घुमाते हैं
हिंदी-गुरु को बुलाते हैं।
"ङ" ने कहा -
गूगल से तर्जुमाँ करवाते हैं
"च" बोला -
क्या अर्थ का अनर्थ करवाना है ?
"छ" ने पूछ लिया -
इस पेड़ का नाम क्या है ?
अलंकरण विहीन
वृक्ष का नाम ..... ?
कोई उत्तर नहीं मिला ....
पेड़ की पहचान
तो क्या पत्ते,फूल-फल,बीज होते हैं?.
तलाश पूरी हुई
अर्ज़ी तैयार हुई
रौब से अँग्रेज़ी में
किये सबने
हस्ताक्षर
मोती / जलेबी जैसे
आँग्ल-भाषा-आखर
आवेदन चला
कार में होकर सवार
साथ चले युवा
उत्साही दो-चार।
ऑपरेशन की
देख-सुन तैयारी
सूखा सिकुड़ा बे-नूर
दरख़्त हुआ बेचैन
तेज़ हवा को
कोसता कहता-
है तेरी ही यह देन
चहुँओर घिर आयी
विकट निराशा को
नहीं पा रहा खदेड़
अतीत की स्मृतियों में
खो गया सूखा पेड़।
मैं एक नर्सरी में
अंकुरित हुआ
सलोनी धूप पाकर
विकसित हुआ
एक क़द्र-दान-ए- क़ुदरत
ले आया था अपने घर
रोपा था उसने तबियत से
घर के बाहर
पहुँच पशुओं की
न हो मुझ तक
ईंटों का मेरे आसपास
घेरा बनाया जालीदार
खाद-पानी देता
छिड़कता दवा दीमकमार।
..... जारी
लाता गुड़ गोबर
सूखी पत्तियों
का कम्पोस्ट
अब कहाँ मिलेगा
वो प्यारा दोस्त।
मैं बड़ा होने लगा
वो मेरी बेडोल
शाख़ों की छंटाई करता
मुझे रूपवान होते देख
आल्हादित होता गया
आहिस्ता-आहिस्ता
मैं गबरू जवान हो गया
डालियाँ फैलीं
इठलाकर तनकर
करने लगीं गुफ़्तगू
नीले अम्बर से
तना तनते-तनते
सख़्त और चौड़ा हो गया
पत्तियाँ धना साया
लेकर आच्छादित हुईं
सांझ की धूप मुझपर ठहरती
मानो ढका हूँ पीले अम्बर से
धूप-चाँदनी बादल-घटाऐं
फ़लक से ज़मीं तक
छाने लगीं चंचल फ़ज़ाऐं
झूमती डालियों की
आहें-अदाएँ पशु-पक्षी
इंसान को रिझाने लगीं
फ़सल -ए -बहार की
मनोरम आहटें आने लगीं
नाज़-ओ-अंदाज़ से
इतराता मेरा सौंदर्य
हसीं साज़-सा बजता
कोंपलों-पल्लवों का माधुर्य
मुझे आत्ममुग्ध करता।
मुझे पाल-पोशकर
बड़ा करने वाला
एक दिन कहीं और
रहने चला गया
कुछ वर्ष पहले
मेरे साथ सेल्फ़ी ले गया
वर्षों से देखा नहीं
पता नहीं उसे क्या हुआ
करता हूँ उसके
चंगे रहने की दिन-रात दुआ।
मैं गवाह हूँ
बहुतेरे खट्टे-मीठे
किस्सों का
मेरे साये में
चैन से बैठकर
कितनी मौलिक
कहानियाँ कही गयीं
प्यार और दर्द के
अनसुने अफ़्साने सुने
वेदना से कराहते
लोगों की आहें-चीखें
सोचो मुझसे कैसे सही गयीं.....
मेरी छाँव में
कभी चोर अपना
हिसाब लगाता था
कभी कोई रोटी को व्याकुल
रोज़ी की आश लिए बैठता था
बस्तियां आबाद हुईं मेरे साथ
कितनों ने पींगें बढ़ायीं झूलों पर
कितने मर-मिटे अपने उसूलों पर
अगाध श्रद्धा ने बाँध दिए कितने धागे
मनौती के साथ
वृक्ष-देवता का
मान-सम्मान देकर
देता रहा हूँ ठंडक
बिना बिजली लेकर
सबको मुफ़्त में दी
ऑक्सीजन प्राणवायु
ख़ुद ग्रहण की ज़हरीली
कार्बन-डाई-ऑक्साइड
हों सभी दीर्घायु ।
साक्षी हूँ समय का
बढ़ती पीढ़ियों का
इतिहास मुझसे पूछो
सभ्यता की सीढ़ियों का
दफ़्न हैं मेरे सीने में
कई राज़ दुर्घटनाओं के
संगीन ज़ुर्म-वारदात के
पुलिस की तफ़तीश में
मेरा ज़िक्र होता है
क़ानून भी अब मेरी
रखवाली का भार ढोता है।
मनुष्य तुम
कितने ख़ुद-ग़रज़ हो ?
अपने लाभ के लिए
रोपते-सहेजते हो मुझे
अपनी सहूलियत-सुविधा
के लिए उजाड़ते हो मुझे
आज भी घर लौटते
लम्बी उड़ान से
हाँफते हारे-थके पक्षी
मेरी सूखी काया पर
विश्राम करते हैं
बग़ल में हरे-भरे
वृक्षों में घात लगाए छिपे
शिकारियों के
डर से लरज़ते हैं।
घरघराती आवाज़ के साथ
एक ट्रैक्टर आकर रुका
कुछ आदमी उतरे
रस्सी,कुल्हाड़ी,आरी,दराँती लिए
"लकड़ी तो काम की है ...."
कसाई-निगाहों से
सूखे पेड़ को कूतते हुए
एक ने कहा
और दूसरे ने तने को
ज़ोर से थपथपाया
थरथर काँपा बेचारा देख नज़ारा
सूखा पेड़ सपनों से बाहर आया।
कटते-कटते
कराहते हुए
सोच रहा है
बे-बस सूखा पेड़ -
मुझमें अब भी
बाक़ी है आग ही आग
लकड़ी आएगी काम
संसार की भलाई में
वर्षों छुपी रहेगी आग
मेरी लकड़ी से बनी
दिया-सलाई में
मेरी लकड़ी से
बनी अगर कुर्सी-मेज़
तो कुर्सी पर बैठने वाला
एक ऐसा भी होगा
जिसका
ज़मीर ज़रूर जागेगा
उठाएगा मेज़ से
कागज़-क़लम
और लिखेगा -
कविता,कहानी,लेख,उपन्यास,वार्ता,ख़बर ,
रेखाचित्र, ग़ज़ल , निबंध, नज़्म , नाटक ...........
जिनमें संवेदना की चाभियाँ
खोलेंगीं वृक्षों को रोपने / सहेजने के लिए
आदमी के दिमाग़ के ताले और फाटक .......
हे परमात्मा !
सुनो मेरी निदा !
सुनो मेरी जुस्तुजू !
नादान मनुष्य को !
माफ़ करना.......!
मुझ मज़बूर
मूक जीव ने...!
इच्छा-मृत्यु के लिए...!!
कभी एप्लाई नहीं किया था... !!!
#रवीन्द्र सिंह यादव
चित्र साभार - वीरेश कुमार ,तुषार ,मुकुंद ,पुनीत कुमार आगरा वाले
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (04-08-2017) को "राखी के ये तार" (चर्चा अंक 2686) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हार्दिक आभार आपका। रचना का मान बढ़ाने के लिए। आल्हादित हूँ चर्चा मंच में पहली बार स्थान पाकर। चर्चा में देर से शामिल होने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ। आभार सादर।
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