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31 अगस्त 2017

नाज सच्चे इश्‍क पर है, हुनर का दावा नहीं...

1919-2005
बादलों से लेकर चांद पर अपने शब्‍दों  के दस्‍तखत 
करने वाली अमृता प्रीतम 
31 अगस्‍त को ही जन्‍मी थीं अमृता जी...
लीजिए मेरी प्रिय कवियत्री की एक कविता पढ़िए....

रोजी

नीले आसमान के कोने में
रात-मिल का साइरन बोलता है
चाँद की चिमनी में से
सफ़ेद गाढ़ा धुआँ उठता है

सपने — जैसे कई भट्टियाँ हैं
हर भट्टी में आग झोंकता हुआ
मेरा इश्क़ मज़दूरी करता है

तेरा मिलना ऐसे होता है
जैसे कोई हथेली पर
एक वक़्त की रोजी रख दे।

जो ख़ाली हँडिया भरता है
राँध-पकाकर अन्न परसकर
वही हाँडी उलटा रखता है

बची आँच पर हाथ सेकता है
घड़ी पहर को सुस्ता लेता है
और खुदा का शुक्र मनाता है।

रात-मिल का साइरन बोलता है
चाँद की चिमनी में से
धुआँ इस उम्मीद पर निकलता है

जो कमाना है वही खाना है
न कोई टुकड़ा कल का बचा है

न कोई टुकड़ा कल के लिए है…
- अमृता प्रीतम
प्रस्तुति सहयोगः दीदी अलकनन्दा सिंह



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