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8 नवंबर 2017

वफ़ा लिपट कर थी रात भर रोई


कही  गुम है शदा  इसकी खबर क्या।
जब हमारे  हर दफा  अब सबर क्या।।

मका  भी  फुर्सत  से   लूटा  गया था।
लुट गया सब  रखे भी तो नजर क्या।।

वफ़ा  लिपट   कर  थी  रात  भर रोई।
गिरा अश्क जिधर देखे वो अधर क्या।।

हुई  खत्म   मुहब्बत   दरमियां  हमारे।
ज़हाँ  मैं   है   बता  कोई  अजर  क्या।।

मिरी   इस    हार    पर   वो   खुश  है।
बता  देखा   कभी   ऐसा   मंज़र  क्या।।

उसे  याद  तक  नही  आता 'मित्रा' ये।
जमी  दिल  की  रहेगी अब बंजर क्या।।
          
           ✍🏻✍🏻हिमांशु मित्रा 'रवि'

10 टिप्‍पणियां:

  1. वफ़ा लिपट कर थी रात भर रोई।
    गिरा अश्क जिधर देखे वो अधर क्या।।

    सुंदर गजल....👌👌👌

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  2. नमस्ते, आपकी यह प्रस्तुति "पाँच लिंकों का आनंद" ( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
    रविवार 12-11-2017 को (प्रातः 4:00 बजे के बाद प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा ) प्रकाशनार्थ 849 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
    चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर। सधन्यवाद।

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  3. मका भी फुर्सत से लूटा गया था।
    लुट गया सब रखे भी तो नजर क्या।।

    बहुत बढ़िया। वाह

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  4. सुन्दर अभिव्यक्ति। बधाई और शुभकामनायें।

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  5. बहुत सुन्दर, लाजवाब गजल....
    वाह!!!

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  6. वाह ... अलग तरह के नायाब शेर ... बहुत कमाल की ग़ज़ल ...

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  7. आपका सभी बहुत बहुत धन्यवाद
    आप सभी की प्रतिक्रियाएं मेरे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है
    इनसे मुझे लिखने का बल प्राप्त होता है

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