मन-मृदंग बजा जा
सजनी ....
मैं मयूर बन
करूँगा नर्तन
होगा तन-मन
सावन-सावन
उमड़-घुमड़कर बन
घटा सी
रिमझिम करती छा
जा सजनी
सरगम बनकर आजा
सजनी
मन-मृदंग बजा जा
सजनी ....
कह ले अपनी, सुन ले मेरी
सुख-सपनें या पीर
घनेरी
बाँटेंगे मिलकर
के दोनों
हाल-ए-दिल सुना
जा सजनी
सरगम बनकर आजा
सजनी
मन-मृदंग बजा जा
सजनी ....
मैं आवारा बादल
जैसा
फिरूँ भटकता पागल
जैसा
एक ठिकाना दे-दे
मुझको
घर-अँगना बसा जा
सजनी
सरगम बनकर आजा
सजनी
मन-मृदंग बजा जा
सजनी ....
फूलों की माला-सा
जीवन
इमरत-सा, हाला-सा जीवन
जो कुछ है, होने से तेरे
होजा मेरी, ना जा सजनी
सरगम बनकर आजा
सजनी
मन-मृदंग बजा जा
सजनी ....
-© के.एल. स्वामी ‘केशव’
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत बहुत आभार महोदया !!
हटाएंबहुत ही सुंदर....
जवाब देंहटाएंआभार सर आप का....
आपका भी धन्यवाद महोदय !!
हटाएंSo Nice
जवाब देंहटाएंथैंक्स शर्माजी !!
हटाएंधन्यवाद महोदय !!
जवाब देंहटाएंवाह.. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंसादर आभार जी !!
हटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सरजी !!
हटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद महोदय ! नमन......
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंआभार सर
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