ब्लौग सेतु....

24 दिसंबर 2017

हसरतों की बरातों को जगह नहीं है ....बदरुल अहमद

इस दिल से तल्ख़ यादों को मिटा दे 
हसरतों को तू कोई और जगह दे 

इंसान की काठी कमजोर बहुत है 
मिटटी में इसकी कुछ और मिला दे 

हसरतों की बरातों को जगह नहीं है 
शैतानो की बस्ती को शमशान बना दे 

ऐ औरों के खुदा "अहमद" की तमन्ना है 
जो कर सके प्यार, वो इंसान बना दे

-बदरुल अहमद


1 टिप्पणी:

स्वागत है आप का इस ब्लौग पर, ये रचना कैसी लगी? टिप्पणी द्वारा अवगत कराएं...