कश्मीर से अयोध्या तक
बस संगीनों का साया है
हे राम तुम्हारी नगरी में,
कैसा सन्नाटा छाया है...
ऐसी तो अयोध्या न थी कभी,
जहा मानवता की चिता जले..
इस मर्यादा की नगरी में,
सब खुद की मर्यादा भूले
हे राम तुम्हारी सृष्टी में
हैं कोटि कोटि गृह बसे हुए..
इस गर्भ गृह की रक्षा में,
आखिर अब कितनी बलि चढ़े...
इन लाशों के अम्बारों पर
बाबर और बाबरी बसतें हैं...
यहाँ हनुमान हैं कई खड़े...
जो राम ह्रदय में रखतें हैं...
इन विघ्नों के आवर्तों से
हम नहीं कभी अब तक हैं डरे...
हमने दधिची को पूजा है,
जो वज्र ह्रदय में रखतें हैं..
इस राम कृष्ण की धरती पर
हम भगवा ध्वज लहरायेंगे
ये हिन्दू धर्मं सनातन है
हम हिन्दू धर्म निभायेंगें
आहुति अब पूरी होगी
हम अश्वमेध को लायेंगे
जो जन्म भूमि है राम की...
वहां राम ही पूजे जायेंगे..
एक नहीं दो बार नहीं हर बार यही दोहरायेंगे
सौगंध राम की खाते हैं,हम मंदिर वहीँ बनायेंगे...
सौगंध राम की खाते हैं,हम मंदिर वहीँ बनायेंगे...
"आशुतोष नाथ तिवारी"
साभार लिंक
बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना.
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