‘ विरोधरस ‘---10.
विरोधरस के
सात्विक अनुभाव
+रमेशराज
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भाव-दशा
में प्राकृतिक रूप से उत्पन्न होने वाले कायिक परिवर्तन ‘सात्विक
अनुभाव’ कहलाते हैं। किसी भी सुन्दर
स्त्री या अबला को देखकर उसे पाने या दबोचने के लिए दुष्टजनों की भुजाएं फड़कने लगती
हैं। जीभ लार टपकाने लगती है। ये खूबसूरत चीजों पर केवल अपनी कुदृष्टि ही नहीं डालते,
उन्हें कुचलने या मसलने को भी बेचैन रहते हैं-
बुरी निगाहें डाल रहा है,
नारी पर लक्ष्मण लिखने दो।
-दर्शन बेज़ार, एक
प्रहारःलगातार, [तेवरी-संग्रह
] पृ.46
मंच पर सम्मानित होने वाले नेताजी रोमांचित और
गदगद हो जाते हैं-
जब कोई थैली पाते हैं जनसेवकजी
कितने गदगद हो जाते हैं जनसेवकजी।
-रमेशराज, इतिहास
घायल हैं,[तेवरी-संग्रह
] पृ. 44
अपने ही आनंद में डूबे रहने वाले अत्याचारी वर्ग
की एक विशेषता यह होती है कि यह वर्ग दूसरों की त्रासद परिस्थितियों को देखकर हँसने,
मुस्कराने के साथ-साथ
ठहाके लगाने लगता है। आतंकवादियों को लाशों के ढेर देखकर जिस आनंद की प्राप्ति होती
है, वह किसी से छुपा नहीं है। ऐसे
लोग चीखते वातावरण के बीच अट्टहास करते हुए अपनी प्रसन्नता का इजहार करते हैं-
फातिमा की चीख पर करते दरिन्दे अट्टहास,
आज मरियम बन्द कमरे में पड़ी चिल्ला रही।
-दर्शन बेजारः
एक प्रहारः लगातार [तेवरी-संग्रह ]
पृ. 41
सच्चाई ताने सहती,
झूठ सभी का यार हुआ।
-राजेंद्र वर्मा, सूर्य
का उजाला, समीक्षा अंक,
पृ.2
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+रमेशराज की पुस्तक ‘ विरोधरस ’ से
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+रमेशराज, 15/109, ईसानगर, अलीगढ़-202001
मो.-9634551630
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