‘ विरोधरस ‘---11.
विरोध-रस
का आलंबनगत संचारी भाव
+रमेशराज
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विरोध की रस-प्रक्रिया
को समझने के लिये आवश्यक यह है कि सर्वप्रथम आलंबन के उन भावों को समझा जाये जो आश्रय
के मन में रसोद्बोधन का आधार बनते हैं। विरोध-रस
के आलंबन चूंकि धूर्त्त , मक्कार,
अत्याचारी, बर्बर,
आतातायी और हर प्रकार की अनैतिकता के व्यवसायी होते
हैं और इनकी काली करतूतें ही आश्रय अर्थात् आमजन को एक दुखानुभूति के साथ उद्दीप्त
करती हैं, अतः इनके
भीतर छुपे हुए हर कुटिल भाव का आकलन भी जरूरी है। चतुर और शोषक वर्ग के मन में निम्न
भाव हमेशा वास करते हैं-
असामाजिक और अवांछनीय तत्त्वों में पाये जाने वाला
रस-पदार्थ मद है। मद में चूर लोगों
का मकसद दूसरे प्राणियों को शारीरिक और मानसिक हानि पहुंचाना होता है। साथ ही यह बताना
होता है कि हम ही महान है। इस जहां के बाकी जितने इन्सान हैं,
वे उन्हें अपने पैरों की जूती समझकर अपनी तूती की आवाज
को बुलंद करना चाहते हैं।
मदांध लोग सभ्य समाज के बीच खंजर उठाये,
बाहें चढ़ाये, अहंकार
और गर्व के साथ घूमते हैं-
खून के धब्बे न अब तक सूख पाये
आ गये फिर लोग लो खंजर उठाये।
-दर्शन बेजार,
देश खण्डित हो न जाए [तेवरी-संग्रह
] पृ. 41
' मद '
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मदांध लोग अपनी सत्ता के नशे में किसी असहाय या गरीब
की आह-कराह को नहीं सुनते-
लाश के ऊपर पर टिका जिसका तखत
क्या सुनेगी आह ऐसी सल्तनत।
-दर्शन बेजार,
देश खण्डित हो न जाए [तेवरी-संग्रह
] पृ.52
मद में चूर लोग दुराचार की पराकष्ठा तक जाते हैं।
असहाय द्रौपदी को अपनी जांघ पर बिठाते हैं-
सड़क पर असहाय पांडव देखते
हरण होता द्रौपदी का चीर है।
-दर्शन बेजार,
एक प्रहारः लगातार [तेवरी-संग्रह
] पृ. 21
उग्रता
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गलत आचरण का वरण करने वाले लोगों के मन से शांति का
हरण हो जाता है। ऐसे लोग अशांत चित्त वाले ही नहीं होते,
इनके मन में आक्रामकता और उग्रता भरी होती है जो इन्हें
सदैव हिंसक कार्य के लिए उकसाती है-
जो हुकूमत कर रहे हैं ताकतों से,
जुड़ गये जुल्मोसितम की आदतों से।
-दर्शन बेजार,
एक प्रहारः लगातार [तेवरी-संग्रह
] पृ. 49
उग्र लोगों की अगर कोई विचारधारा होती है तो वह
है-आतंकवाद। भयावह आक्रामकता से
भरे इनके इरादे जनता को गाजर-मूली
की तरह काटते हैं-
जान का दुश्मन बना क्यों भिंडरा,
संत पर हैवानियत आसीन क्यों?
-दर्शन बेजार,
एक प्रहारः लगातार [तेवरी-संग्रह
] पृ.59
स्वार्थ
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विरोधरस के आलंबन बने स्वार्थी लोगों के मन सदैव
सद्भावना के दर्पन चटकाते हैं। ये जिस किसी के दिल में जगह बनाते हैं,
उसी के साथ विश्वासघात करते हैं। अपनी स्वार्थपूर्ति
के लिये ये कहीं सूदखोर महाजन हैं तो कहीं जहरखुरानी करते राहजन हैं। जनता को ठगने
के लिये कहीं ये साधु के रूप में उपस्थित हैं तो कहीं घोर आदर्शवाद को दर्शाते इनके
छल भरे इनके आचरण हैं-
जिस हवेली को रियाया टेकती मत्था रही,
वह हवेली जिस्म के व्यापार का अड्डा रही।
-दर्शन बेजार,
एक प्रहारः लगातार [तेवरी-संग्रह
] पृ. 41
अपनी स्वार्थसिद्धि के लिये ऐसे लोग ईमानदारी का
मर्सिया पढ़ते हैं तो दुराचरण को कसीदे की तरह गाते हैं। अभिनंदन और धन के लिये ऐसे
लोगों के मुंह से दुराचारियों की तारीफ में फूल झड़ते हैं। इस तरह ये लोग अनीति को
आधार बनाकर प्रगति की सीढि़यां चढ़ते हैं-
पुरस्कार हित बिकी कलम अब क्या होगा?
भाटों की है जेब गरम अब क्या होगा?
‘प्रेमचंद’,
‘वंकिम’, ‘कबीर’
के बेटों ने,
बेच दिया ईमान-धरम
अब क्या होगा?
-दर्शन बेजार,
एक प्रहारःलगातार [तेवरी-संग्रह
] पृ. 39
स्वार्थी लोगों की अतृप्त इच्छाएं कभी तृप्त नहीं
होतीं। ऐसे लोग अति महत्वाकांक्षी होते हैं। ये लोग छल-कपट
का व्यापार करते हैं। ये दूसरों के हाथ के निवाले छीनते हैं। औरों के लिये विषैला वातावरण तैयार करते हैं। इनके
घिनौने व्यापार की मार से आज न धरती अछूती है, न
आसमान-
जमीं पै रहने वालों की हवस आकाश तक पहुंची,
धरा की बात छोड़ो ये गगन तक बेच डालेंगे।
-सुरेश त्रस्त,
इतिहास घायल है [तेवरी-संग्रह
] पृ.30
अंगरेजी में कर हिंदी की ऐसी-तैसी,
अपनी बड़ी दुकान अजाने,
धत्त तेरे की।
-डॉ.राजेंद्र
मिलन, सूर्य का उजाला,
समीक्षा अंक, पृ.2
वितर्क
या कुतर्क
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अपनी बात या विचारधारा को मनवाने या स्थापित करने के
लिये धूर्त्त और मक्कार लोग कुतर्क या वितर्क का सहारा लेते हैं। हर कथित धर्म का संचालक
अपने अधर्म को स्थापित करने के लिये सत्य के नाम पर तरह-तरह
के कुतर्क गढ़ता है। असत्य को सत्य के रूप में स्थापित करने वाले लोगों का,
जो साक्षात प्रमाणित है,
उसे न मानकर, जो
छद्म है, झूठ है,
छल है, की
स्थापना करना ही उद्देश्य होता है -
एक ‘रेप’
अंकित है जिसकी हर धड़कन पर,
तुम उसको-
उल्फत का सैलाब कह रहे,
जाने तुम कैसे शायर हो?
-विजयपाल सिंह,
इतिहास घायल है [तेवरी-संग्रह
] पृ.22
वितर्क या कुतर्क के सहारे अफवाहों को जन-जन
के बीच फैलाना और उन्हें दंगों के द्वारा ‘वोट’
के रूप में भुनाना हमारे देश के नेताओं को भलीभांति
आता है। अफवाहों के बीच हिंदू और मुसलमान में तब्दील हुए लोग कुतर्क या वितर्क से एक
ऐसा नर्क पैदा करते हैं, जिसके भीतर
निर्दोष लोग चाकुओं, गोलियों से
घायल होते हैं, मरते हैं-
बड़ी विषैली हवा चली है शहरों में,
घिरे लोग सब अफवाहों की लहरों में
,
सड़कों पर कस दिया शिकंजा कर्फ्यू ने,
कैद हुए हम संगीनों के पहरों में।
-दर्शन बेजार,
एक प्रहारः लगातार [तेवरी-संग्रह
] पृ. 28
यह भी धर्मिक उन्मादियों के वितर्क का ही परिणाम
है-
लोग हैवान हुए दंगों में,
हिंदू-मुसलमान
हुए दंगों में।
धर्म चाकू-सा
पड़ा लोगों पर, कत्ल इन्सान
हुए दंगों में।
-योगेन्द्र
शर्मा, कबीर जिंदा है [तेवरी-संग्रह
] पृ. 67
वितर्क एक ऐसा भाव है जिसके द्वारा वकील एक निर्दोष
को फांसी पर चढ़वा देता है। थाने में आये असहाय, निर्बल
और निर्धन से धन न आता देखकर हमारे देश की पुलिस सबसे अधिक वितर्क का सहारा लेती है।
एक नेता अपनी सत्ता को कायम रखने या सत्ता का मजा
चखने के लिये मंच पर भाषण देते समय केवल वितर्क के बलबूते पूरे जन समुदाय को मंत्रमुग्ध
कर देता है-
‘भारत में
जन-जन को हिंदी अपनानी है’,
अंगरेजी में समझाते हैं जनसेवक जी।
-रमेशराज,
इतिहास घायल है [तेवरी-संग्रह
] पृ. 44
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+रमेशराज की पुस्तक ‘ विरोधरस ’ से
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+रमेशराज, 15/109, ईसानगर, अलीगढ़-202001
मो.-9634551630
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