Pages

11 नवंबर 2017

जिंदगी का मान न कर

बड़ी ख़ुशी के लिए छोटी ख़ुशी को कुर्बान न कर 
खुदा के हसीं लम्हो का तू यूं अपमान न कर 
कतरा-कतरा मिट जाएगी तेरी जिंदगी यूं ही 
जन्नत जमीं पर है तेरी ,काबू में आसमान न कर  
समेट ले हर हसीं लम्हे को तू दामन में 
पहले ही देर है अब तू सुबह से शाम न कर 
धुलने दे दिल के जज़्बातों को किसी के आंसुओं से 
बेवजह यूं ही तू अपने पराये की पहचान न कर 
इन बेवफा साँसों का पल भर का भी भरोसा नहीं 
तू यूं ही सालों का इकठा सामान न कर 
 जहाँ जीत कर भी हासिल क्या हुआ सिकंदर को 
मौत साथ है तेरे तू इस जिंदगी का मान न कर 
तेरा ये ठिकाना कल किसी और का घर होगा हितेश 
जिंदगी की चाह में तू मौत को यूं बदनाम न कर

5 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (13-11-2017) को
    "जन-मानस बदहाल" (चर्चा अंक 2787)
    पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं

स्वागत है आप का इस ब्लौग पर, ये रचना कैसी लगी? टिप्पणी द्वारा अवगत कराएं...