Pages

12 नवंबर 2017

हे प्रिय

ये सुनने मे कोई कष्ट नही

तुम किसी और की हो 

सत्य है ये 

कष्ट तो तब होता है

जब तुम मेरे वास्तविक स्वप्न मे आती हो

कदाचित न आया करो

हे प्रिय! 

तुम्हारे आने से मेरी सांस

ऊर्ध्वप्रवाहित होने लगती है 

कौन सा बल है तुम मे,

जो धरा के मनुष्य मे नही

यदि होता तो मेरे लिए सरल होता

प्रतिदिन टूटते इन अश्रुओं के बांध को 

एक स्थायित्व देना

     -- हिमांशु मित्रा

2 टिप्‍पणियां:

स्वागत है आप का इस ब्लौग पर, ये रचना कैसी लगी? टिप्पणी द्वारा अवगत कराएं...