ये सुनने मे कोई कष्ट नही
तुम किसी और की हो
सत्य है ये
कष्ट तो तब होता है
जब तुम मेरे वास्तविक स्वप्न मे आती हो
कदाचित न आया करो
हे प्रिय!
तुम्हारे आने से मेरी सांस
ऊर्ध्वप्रवाहित होने लगती है
कौन सा बल है तुम मे,
जो धरा के मनुष्य मे नही
यदि होता तो मेरे लिए सरल होता
प्रतिदिन टूटते इन अश्रुओं के बांध को
एक स्थायित्व देना
-- हिमांशु मित्रा
दिनांक 14/11/2017 को...
जवाब देंहटाएंआप की रचना का लिंक होगा...
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी इस चर्चा में सादर आमंत्रित हैं...
बहुत सुन्दर !
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