आज फिर तुमने शहर जला दिया
हरि भूमि राह देख रही
मृत्यु ताण्डव झेल रही
आस की हर साँस में
पाञ्चजन्य पुकार रही
कृष्ण की इस धर्मधरा पर
क्यों फिर रक्त बहा दिया
आज फिर तुमने शहर जला दिया |
चीर फिर लहरा रहा
भीम उर को चीर रहा
कौरव हैं निस्तब्ध नि:शब्द
पाण्डव बिगुल बजा रहा
दुशासन के हाथ बचाने
याज्ञसैनी को जला दिया
आज फिर तुमने शहर जला दिया
-डॉ.विमल ढौंडियाल
धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर....आभार आप का.....
जवाब देंहटाएंसभी काव्य रसास्वादन निपुण गुणिजनों का साधुवाद
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