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11 मई 2018

जख्म



                     



वो जो अक्सर फजर से उगा करते है
सुना है बहुत दिल से धुआं करते है।
जलता है इश्क या खुद ही जल जाते है
कलमे में खूब चेहरे पढा करते है।
फजल की बात पर खामोशी थमा देते है
बेवजह ही क्यों खुद को खुदा करते है?
आयतें रोज ही लिखते है मदीने के लिए
और अक्सर मगरिब में डूबा करते है
मेरी रुह तक आती है लफ्जों की आहट
मुद्दतों से जो ऐसे जख्म लिखा करते हैं।।


पारुल
Rhythmofwords.blogspot.com

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