कविता मंच
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7 अप्रैल 2022
17 मार्च 2022
होली का एक रोमांचक संस्मरण
*संस्मरण*
होली पर शहीद ऊधम सिंह की तरह मैं भी फांसी पर लटक जाता
*रमेशराज
*********************
अपने अलीगढ़ की जन्मस्थली गांव एसी में होली के अवसर पर शहीद ऊधम सिंह पर खुद ही रचकर एक नाटक का मंचन किया।
घटना 1973 की है, तब मैं बी. ए. कर रहा था । नाटक का मंचन गांव के ही रामवीर ढुलकिया के चबूतरे पर हुआ था।
कविमित्र महेशकुमार पाठक व डॉ दिनेश कुमार पाठक के पिताश्री ने सूत्रधार की भूमिका निभाई थी। अब वे इस संसार में नहीं हैं, उन्हें नमन। मैंने शहीद ऊधम सिंह की भूमिका निभाई।महेश को क्या भूमिका मिली थी, याद नहीं आ रहा।
नाटक के अंतिम दृश्य को सजीव बनाने के लिये लोहे की गिररी पर रस्सी का फंदा बांधकर उसे एक बल्ली पर लटका दिया था। उसकी डोर गांव के चक्की वाले मुंशी जी के लड़के धर्मवीर के हाथ में थी। फांसी के दृश्य पर उस नासमझ ने रस्सी को थोड़ा खींचने के स्थान पर अधिक खींच दिया। परिणाम स्वरूप गिररी से लटकी रस्सी का फंदा इतना तन गया कि मैं जमीन से ऊपर हवा में लटक गया।
ईश्वर की कृपा इतनी रही कि जितनी तेजी से यह कार्य हुआ, उतनी ही फुर्ती से मैंने गले और रस्सी के बीच अपने हाथ फंसा लिए, फलस्वरूप रस्सी का सारा तनाव, खिंचाव मेरे हाथ झेल गए। गर्दन दवाब से मुक्त रही। अगर ऐसा न हुआ होता तो ऊधम सिंह की तरह फांसी मुझे भी लग जाती।
बचपन के मित्र महेश की याद बहुत आती है। हम दोनों की पूरे गांव में चर्चित और अमर जोड़ी थी। कोरोना के ग्रास के उपरांत मित्र की अब तो स्मृतियां ही शेष हैं।
20 फ़रवरी 2022
रमेशराज की वर्णिक छन्दों में तेवरियाँ
*रति वर्णवृत्त में तेवरी*
**********
खल हैं सखी
मल हैं सखी।
जन से करें
छल हैं सखी।
सब विष-भरे
फल हैं सखी।
सुख के कहाँ
पल हैं सखी।
नयना हुए
नल हैं सखी।
*रमेशराज
*विमोहा वर्णिक छंद में तेवरी
***********
आन को रोइए
मान को रोइए।
बारहा खो रही
शान को रोइए।
कौन दे रोटियां
दान को रोइए।
पीर को जो सुने
कान को रोइए।
चीख़ ही चीख़ हैं
गान को रोइए।
*रमेशराज
*विमोहा वर्णिक छंद में तेवरी
**********
आज ये हाल हैं
जाल ही जाल हैं।
लापता है नदी
सूखते ताल हैं।
सन्त हैं नाम के
खींचते खाल हैं।
क्या गली क्या मकां
खून से लाल हैं।
गर्दनों पे छुरी
थाप को गाल हैं।
*रमेशराज
*तेवरी ( राजभा राजभा )
**********
आपदा शारदे
ले बचा शारदे!
घोंटती है गला
ये हवा शारदे!
मातमी मातमी
है फ़िजा शारदे!
खत्म हो खत्म हो
ये निशा शारदे!
डाल पे गा उठे
कोकिला शारदे।
* रमेशराज
* रति वर्णवृत्त में रमेशराज की एक तेवरी
*******
हम हीन हैं
अति दीन हैं।
सब बस्तियां
ग़मगीन हैं।
उत जाल-से
जित मीन हैं।
चुप बाँसुरी
गुम बीन हैं।
दुःख से भरे
अब सीन हैं।
*रमेशराज
*विमोहा वर्णवर्त्त में तेवरी
**********
ज़िन्दगी लापता
रोशनी लापता।
फूल जैसी दिखे
वो खुशी लापता।
होंठ नाशाद हैं
बाँसुरी लापता।
लोग हैवान-से
आदमी लापता।
प्यार की मानिए
है नदी लापता।
*रमेशराज
*रति वर्णवृत्त में तेवरी*
**********
खल हैं सखी
मल हैं सखी।
जन से करें
छल हैं सखी।
सब विष-भरे
फल हैं सखी।
सुख के कहाँ
पल हैं सखी।
नयना दिखें
नल हैं सखी।
*रमेशराज
*।।तेवरी।।तिलका वर्णिक छंद ।।सलगा सलगा।।
**********
हर बार मिले
बस प्यार मिले।
बढ़ते दुःख का
उपचार मिले।
नित फूल खिलें
जित खार मिले।
मन के मरु को
जलधार मिले।
*रमेशराज
*विमोहा वर्णिक छंद में तेवरी ।।राजभा राजभा।।
**********
प्रेम की थाह में
आदमी डाह में।
रोशनी लापता
तीरगी राह में।
जो रहे वाह में
आज हैं आह में।
प्रेम की ये दशा
देह है चाह में।
क्या मिला सोचिए
आपको दाह में।
*रमेशराज
*।। तेवरी।। विमोहा वर्णिक छंद..राजभा राजभा
**************
आग ही आग है
बेसुरा राग है।
बस्तियां राख हैं
गाइये फ़ाग है।
खो गये हैं गुणा
भाग ही भाग है।
आह का डाह का
दंशता नाग है।
है खिजां ही खिजां
सूखता बाग है।
*रमेशराज
*।। तेवरी।। विमोहा वर्णिक छंद..राजभा राजभा
**************
आग ही आग है
बेसुरा राग है।
बस्तियां राख हैं
गाइये फ़ाग है।
खो गये हैं गुणा
भाग ही भाग है।
आह का डाह का
दंशता नाग है।
है खिजां ही खिजां
सूखता बाग है।
*रमेशराज
*तेवरी।।तिलका वर्णिक छंद।।सलगा सलगा
**********
बचना ग़म से
इस मातम से।
यह दौर बुरा
सब हैं यम-से।
अब तो रहते
नयना नम-से।
अब लोग दिखें
जग में बम-से।
हम 'गौतम' हैं
मिलना हम से।
*रमेशराज
*तेवरी ।। राजभा राजभा।।
********************
आप तो आप हैं
बॉस हैं, बाप हैं।
आप हैं तो यहाँ
पाप ही पाप हैं।
आप है बर्फ़-से
आप ही भाप हैं।
मौत के मातमी
आपसे जाप हैं।
वक़्त के गाल पे
आप ही थाप हैं।
*रमेशराज
*तेवरी ।। राजभा राजभा।।
********************
आप तो आप हैं
बॉस हैं, बाप हैं।
आप हैं तो यहाँ
पाप ही पाप हैं।
आप है बर्फ़-से
आप ही भाप हैं।
मौत के मातमी
आपसे जाप हैं।
वक़्त के गाल पे
आप ही थाप हैं।
*रमेशराज
*तिलका वर्णिक छंद में तेवरी*।सलगा सलगा।
**********
मुसकान गयी
मधुतान गयी।
अब बेघर हैं
हर शान गयी।
इतने बदले
पहचान गयी।
दुःख ही दुःख हैं
सुख-खान गयी।
तम से लड़ते
अब जान गयी।
*रमेशराज*
**तेवरी*
आप महान
सुनो श्रीमान।
पहले लूट
करो फिर दान।
माईबाप
आपसे प्रान।
आप पहाड़
गए हम जान।
गर्दभ-राग
आपकी शान।
नेता-रूप!!
धन्य भगवान।
*रमेशराज
*********
सम्पर्क-15/109, ईसानगर, अलीगढ़-उत्तर प्रदेश
10 नवंबर 2021
रमेशराज की 11 तेवरियाँ
रमेशराज की 11 तेवरियाँ
****************
1.
दोनों ही कान्हा के प्रिय हैं
मीरा हो या रसखान। नादान।।
जो निर्बल का बल बनता है
उसके वश में भगवान। नादान।।
तुझको विश्वास मुखौटों पे
सच्चाई कुछ तो जान। नादान।।
ये सम्प्रदाय का चक्कर है
तू धर्म इसे मत मान। नादान।।
पर्दे के पीछे प्रेत यही
इन देवों को पहचान। नादान।।
जो चुगलखोर है, बच उससे
रख यूँ मत कच्चे कान। नादान।।
तू द्वैत जान, अद्वैत समझ
व्रत का मतलब रमजान। नादान।।
*रमेशराज*
2.
*********
सुलझाने बैठें क्या गुत्थी
जब इसका ओर न छोर। हर ओर।।
करनी थी जिन्हें लोकरक्षा
बन बैठे आदमखोर।हर ओर।।
सड़कों पे पउआबाज़ दिखें
लम्पट-गुण्डों का शोर।हर ओर।।
सद्भावों की नदियां सूखीं
अब ग़ायब हुई हिलोर।हर ओर।।
कोयल की कूक मिले गुमसुम
नित नाचें आज न मोर।हर ओर।।
*रमेशराज*
3.
**********
छल का बल का ये दौर मगर
तू अपने नेक उसूल। मत भूल।।
वह मुस्कानों से ठग लेगा
उसके हाथों में फूल। मत भूल।।
ये जंगल ही कुछ ऐसा है
मिलने हैं अभी बबूल। मत भूल।।
कोशिश कर उलझन सुलझेगी
मिल सकता कोई टूल। मत भूल।।
करले संघर्ष, जीत निश्चित
बदले सब कुछ आमूल। मत भूल।।
*रमेशराज*
4.
*तेवरी*
**********
जो सच की खातिर ज़िन्दा है
उसका ही काम तमाम। हे राम!!
खुशियों पर नज़र जिधर डालें
हर सू है क़त्लेआम। हे राम!!
जो रखता चाह उजालों की
उसके हिस्से में शाम। हे राम!!
जिनको प्यारी थी आज़ादी
बन बैठे सभी ग़ुलाम। हे राम!!
कोई छलिया, कोई डाकू
अब किसको करें प्रणाम।हे राम!!
*रमेशराज*
5.
**********
दोनों ही कान्हा के प्रिय हैं
मीरा हो या रसखान। नादान।।
जो निर्बल का बल बनता है
उसके वश में भगवान। नादान।।
तुझको विश्वास मुखौटों पे
सच्चाई कुछ तो जान। नादान।।
ये सम्प्रदाय का चक्कर है
तू धर्म इसे मत मान। नादान।।
पर्दे के पीछे प्रेत यही
इन देवों को पहचान। नादान।।
जो चुगलखोर है, बच उससे
रख यूँ मत कच्चे कान। नादान।।
तू द्वैत जान, अद्वैत समझ
व्रत का मतलब रमजान। नादान।।
*रमेशराज*
6.
**********
बाक़ी तो साफ़-सफ़ाई है
बस पड़ी हुई है पीक।सब ठीक।।
घबरा मत नाव न डूबेगी
बस छेद हुआ बारीक।सब ठीक।।
जीना है इन्हीं हादसों में
तू मार न ऐसे कीक।सब ठीक।।
दीखेगा साँप न तुझे कभी
बस पीटे जा तू लीक।सब ठीक।।
उसपे तेरी हर उलझन का
उत्तर है यही सटीक।सब ठीक।।
*रमेशराज*
7.
*********
अबला की लाज लूटने को
रहते हैं सदा अधीर। हम वीर।।
बलशाली को नित शीश झुका
निर्बल पे साधें तीर। हम वीर।।
उस मल को निर्मल सिद्ध करें
जिस दल की खाते खीर। हम वीर।।
हम से ही ज़िन्दा भीड़तंत्र
सज्जन को देते पीर। हम वीर।।
गरियाने को कविता मानें
हैं ऐसे ग़ालिब-मीर। हम वीर।।
जिस बस्ती में सद्भाव दिखे
झट उसको डालें चीर। हम वीर।।
तुम ठाठ-बाट पे मत जाओ
अपना है नाम फ़कीर। हम वीर।।
*रमेशराज*
8.
**********
तब ही क़िस्मत तेरी बदले
जब रहे हौसला संग। लड़ जंग।।
आनन्द छंद मकरंद लुटे
सब दीख रहा है भंग। लड़ जंग।।
कुछ तो सचेत हो जा प्यारे
वर्ना जीवन बदरंग। लड़ जंग।।
रणकौशल को मत भूल अरे
इतना भी नहीं अपंग। लड़ जंग।।
फिर तोड़ भगीरथ हर पत्थर
तुझको लानी है गंग। लड़ जंग।।
*रमेशराज*
9.
*तेवरी*
*********
जिसमें दिखती हो स्पर्धा
अच्छी है ऐसी होड़। मत छोड़।।
नफ़रत के बदले प्रेम बढ़ा
बिखरे रिश्तों को जोड़। मत छोड़।।
गद्दार वतन में जितने हैं
नीबू-सा उन्हें निचोड़। मत छोड़।।
अति कर बैठे हैं व्यभिचारी
हर घड़ा पाप का फोड़।मत छोड़।।
चलना है नंगे पांव तुझे
जितने काँटे हैं तोड़।मत छोड़।।
वर्ना ये कष्ट बहुत देगा
पापी की बाँह मरोड़।मत छोड़।।
*रमेशराज*
10.
*तेवरी*
**********
कल तेरी जीत सुनिश्चित है
रहना होगा तैयार। मत हार।।
माना तूफ़ां में नाव फँसी
नदिया करनी है पार।मत हार।
इस तीखेपन को क़ायम रख
हारेगा हर गद्दार। मत हार।।
पापी के सम्मुख इतना कर
रख आँखों में अंगार। मत हार।।
तू ईसा है-गुरु नानक है
तू सच का है अवतार। मत हार।।
होता है अक्सर होता है
जीवन का मतलब ख़ार। मत हार।।
साहस को थोड़ा ज़िन्दा रख
पैने कर ले औजार। मत हार।।
दीपक-सा जलकर देख ज़रा
ये भागेगा अँधियार। मत हार।।
*रमेशराज*
11.
*********
तूफ़ां के आगे फिर तूफ़ां
ये नाव न जानी पार। इसबार।।
जीते ठग चोर जेबकतरे
हम गए बाजियां हार।इसबार।।
हर तीर वक्ष पर सहने को
रहना होगा तैयार।इसबार।।
उसका निज़ाम है चीखो मत
वर्ना पड़नी है मार।इसबार।।
ये खत्म नहीं होगी पीड़ा
कर चाहे जो उपचार।इसबार।।
मिलने तुझको अब तो तय है
फूलों के बदले खार।इसबार।
तूने सरपंच बनाये जो
निकले सारे गद्दार।इसबार।।
परिवर्तन वाले सोचों की
पैनी कर प्यारे धार। इसबार।।
*रमेशराज*