ब्लौग सेतु....

27 नवंबर 2015

हिन्द के गद्दार ............हितेश कुमार शर्मा



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                                                                                                       सर्व धरम पर  समदर्शी भाव , है  हिन्द  ह्रदय  विशाल 
है तुच्छ सोच उनकी जो उठाते असहिष्णुता  के सवाल 
शांत प्रिय जीवन यहाँ का , और सुरक्षित है हर दीवार 
पर इसकी विकास की राहों में , रोड़े अटकाते कुछ गद्दार 
जिन्हे दिल में बसाया , वो ही दिल में खंजर चुभोते  हैं 
हिन्द प्रेम का बदला वो नफरत की भाषा से चुकाते  हैं 
देश द्रोही घोषित करो उनको , नहीं जिन्हे राष्ट्र से प्यार 
होगा भला अगर छीन लो उन से,  यहाँ रहने का अधिकार 
धन- दौलत और शोहरत के ढेर पर जिनको है बैठाया 
विष घोल कर दूध में ,  उन्होंने हमें है पिलाया 
हैं कोई इस दुनिया में जो हिन्द को आँख दिखा सके 
है कोई जो इसकी  सहनशीलता  को  मिटा  सके 
हैं गद्दार, जो शांत और शीतल जल पर पत्थर मार रहे हैं 
और भाई चारे की दीवार को जो जड़ से उखाड़ रहे हैं 
राष्ट्र- हित में अब हर भारतीय को अपना फ़र्ज़ निभाना होगा 
कर बहिष्कार ऐसे लोगो का,  उनको सबक सिखाना होगा 
हितेश कुमार शर्मा 

23 नवंबर 2015

अपना भारत आगे बढ़ रहा है.........हितेश कुमार शर्मा



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लड़ी  होंगी  आज़ादी  की   कई  लड़ाईयां  हमारे   पूर्वजों  ने 
आज  तो  हर   इंसान  अपने  आप  से  लड़  रहा  है 
और  इसी  तरह  अपना  भारत  आगे  बढ़ रहा  है ii
कहीं  बिजली  और   पानी  के  लिए  हो  रही  लड़ाई 
और इन सब पर सीना ताने खड़ी है कमरतोड़ महंगाई 
एक  तरफ  भूख  से  बिलखते  लोग 
और  दूसरी   तरफ  अनाज  गोदामों मैं  सड़ रहा  है 
और  इसी  तरह  अपना  भारत  आगे  बढ़  रहा  है II
कोई  नहीं सुरक्षित  ,चाहे  सड़क  हो,  रेल  हो , या  हो  पैदल 
अपनों  से   धोखा, गैरों  से  सितम , है  सकते  में  हर  दिल ,
राह  में  राही,  हैं  आपस  में  भाई  भाई   का  नारा  हुआ  दूर 
अब  तो  अपनी  गलती  होने  पर  भी  दूसरे  पर  अकड़  रहा  है 
और  इसी  तरह  अपना  भारत  आगे  बढ़  रहा  है II
तन  पर  कपडा  नहीं ,पेट  में  रोटी  नहीं  और  नहीं  है  रहने  को  मकान ,
इस  आजाद  देश  में  भी  बन  कर  रह  गयें  हैं  गुलाम ,
और  दूसरी  तरफ  कोई  अपने  को  सोने  और  हीरे  से  जड़  रहा  है 
और  इसी  तरह  अपना  भारत  आगे  बढ़  रहा  है II
जहाँ  इंसानियत  और  सराफत  का  होता  नित्य  बलात्कार 
धरम , जाति  और मज़हब   के  लिए  मचा है  हाहाकार
रंगे हाथो  पकडे  जाने  पर  भी  ,दुसरो  पर  दोष  मड  रहा  है 
और  इसी  तरह  अपना  भारत  आगे  बढ़  रहा  है II
रिश्ते  महंगे  ,दोस्ती  म्हनंगी  और  हुई दुश्मनी सस्ती ,
इसी  रोग  से  सभी  ग्रस्त  हैं  क्या  शहर,  क्या  गाँव,  क्या  बस्ती 
प्रेम  की  किताब  से  हर  कोई  नफरत  की  भाषा  पढ़   रहा  है 
और  इसी  तरह  अपना  भारत  आगे  बढ़  रहा  है II
अपने  हित  के  लिए  क्यों  इंसान सब  को  बेगाना  कर  रहा  है 
तू  क्यों   करता  है  वो  सब  जो  सारा  जमाना  कर  रहा  है 
चार  दिन  की  जिंदगी  और  सालों  से  भटक  रहा  है 
और  इसी  तरह  अपना  भारत  आगे  बढ़  रहा  है II
थी  जो  गुलामी  की  अब  टूट  चुकी  हैं  वो  जंजीरें 
चंद  के  हाथों  से  लिखी  जाती  हैं  सरे  देश  की  तकदीरें 
और  पूरा  भारत  अब  इन्हिकी  मुठी  में  सिकुड़  रहा  है 
और  इसी  तरह  अपना  भारत  आगे  बढ़  रहा  है II
हितेश कुमार शर्मा 

17 नवंबर 2015

कैसे भूलूँ तेरी मोहब्बत को (ग़ज़ल) .......हितेश कुमार शर्मा

                                                                                                                          खता   तेरी  को    खता   कहूँ  तो 
मोहब्बत  बदनाम  होती  है 
हसरतें दिल की तमाम पूरी होती  नहीं 
कुछ  कोशिशे  नाकाम  भी  होती  हैं 
इतना  खुशनसीब  कौन  है  ज़माने  में 
जिसका  दिल  कभी  टूटा  नहीं  
आखें  रोक  नहीं  सकी  दर्द     दिल 
यहाँ  तो  रुस्वाई  सरे  आम  होती  है 
वो  चाहे  या    चाहे  ये  फैसला 
उनका  ही  होता  था  मुझ  पर 
मेरे  दिल  ने  ख़ुशी  इज़हार  किया 
जब उनकी  नज़रें  मेहरबान  होती  है 
यूँ  ही  नहीं तम्मनाओ    के  फूल 
खिलते  हैं  दिल  में  हरपल 
मुरझाये  फूलों  से  पूछो 
नहीं  हर  बार  कली  जवान  होती  है 
दिल में उनकी  चाहत का  ये  आलम  है 
कि  बेवफाई  भी  हमसफ़र  लगती  है 
रोक  लेता  हूँ  आंसू  आँखों  में 
नहीं तो ये  मोहब्बत बदनाम  होती  है 
भूलने की कोशिश कर  रहा  हूँ  उनको 
मगर  कैसे भूलूँगा    ये  सोचता  हूँ 
दिल में हसरत कुछ इस तरह परवान है
कि उनकी यादों से मुलाकात सुबह-शाम होती है 
हितेश कुमार शर्मा 

15 नवंबर 2015

देश के भविष्य




बच्चो,
तुम इस देश के भविष्य हो,
तुम दिखते हो कभी,
भूखे, नंगे ||

कभी पेट की क्षुधा से,
बिलखते-रोते.
एक हाथ से पैंट को पकड़े,
दूजा रोटी को फैलाये ||

कभी मिल जाता है निवाला
तो कभी पेट पकड़ जाते लेट,
होली हो या दिवाली,
हो तिरस्कृत मिलता खाना ||

जब बच्चे ऐसे है,
तो देश का भविष्य कैसा होगा,
फिर भीबच्चो,
तुम ही इस देश के भविष्य हो ||


नोट :- सभी चित्र गूगल से लिए गए है |

13 नवंबर 2015

"आँगन" - डॉ. धर्मवीर भारती

बरसों के बाद उसीसूने- आँगन में
जाकर चुपचाप खड़े होना
रिसती-सी यादों से पिरा-पिरा उठना
मन का कोना-कोना

कोने से फिर उन्हीं सिसकियों का उठना
फिर आकर बाँहों में खो जाना
अकस्मात् मण्डप के गीतों की लहरी
फिर गहरा सन्नाटा हो जाना
दो गाढ़ी मेंहदीवाले हाथों का जुड़ना,
कँपना, बेबस हो गिर जाना

रिसती-सी यादों से पिरा-पिरा उठना
मन को कोना-कोना
बरसों के बाद उसी सूने-से आँगन में
जाकर चुपचाप खड़े होना !

 रचनाकार: - डॉ. धर्मवीर भारती


9 नवंबर 2015

शुभ दिवाली ..............हितेश कुमार शर्मा

                                                                                                                                                                                          शुभ प्रभात,  शुभ  दिवस  की  मंगल  बेला 
घर-घर  दीप प्रज्जवलित करती सुन्दर  बाला 
हर्ष उल्लास की  छटा अदुतिया फैलाती खुशहाली 
जगमग करते दीपों से  रोशन हुई निशा काली 
सुन्दर  तोरण  द्धार  सजे  और  आँगन  रंगोली 
हाथों में  मिष्ठान उपहार और  मधुर  हुई  बोली 
सुन्दर सुन्दर वस्त्रों से सुशोभित हर नर और नारी 
मनमोहक पुष्पों से महकी उपवन की  हर  क्वारी 
भीनी -भीनी खुश्बू से महकता घर का कोना कोना 
प्रदेश से प्रियतम के आगमन का सत्य हुआ सपना सलोना 
प्रसन्नता के पुष्प खिले ,आज बच्चों के  मन  में 
हाथ पटाखे लिए एकत्रित हुए घर के  आँगन  में 
मुस्कराहट संग होता उपहारों का  आदान  प्रदान 
सबकी भिन्न-भिन्न पोशाक और भिन्न-भिन्न है शान 
लक्ष्मी पूजन कर मांगते  सुख समृद्धि का वरदान 
दिवाली के शुभ पर्व पर रोशन हुआ मेरा हिंदुस्तान 




                                 हितेश  कुमार शर्मा 

5 नवंबर 2015

आज की दिवाली ............हितेश कुमार शर्मा

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दिवाली  क्यों  मानते  हैं,  करो  ये  स्मरण 
उपहारों  की  चकाचौंध  में,  भूले  अपनापन 
हर एक करता है दिवाली का बेसब्री से  इंतज़ार 
मन  में  चाहत , कि  हो  उपहारों  की  बौछार 
उपहार देने की चाहत का ,एक  ही  है  उसूल 
उसकी कीमत से  कई गुना, करना  है  वसूल 
आधुनिक दिवाली  का क्या  हो  गया  है  स्वरुप 
दिखावे में है सौंदर्य और राम आदर्श  हुए करूप 
प्रभु राम की अयोध्या वापसी से हुआ था इसका      आगाज़ 
क्या आज की पीढ़ी को है इसका जरा  सा  अंदाज 
आज का बेटा  राम नहीं,  और न ही दरसरथ हुए बाप 
सत्य, मर्यादा ,और संस्कार हुए बीते दिनों की          बात 
धन  दौलत  के  लिए  ही  करते  लक्ष्मी  पूजा 
ये  सबका  भगवान  और  नहीं  कोई  दूजा 
इस शुभ पर्व का कुछ इस तरह हो रहा सत्यानास 
लेंन देंन के चक्कर में, राम नाम लगता है उपहास 
 
आओ इस बार की दिवाली कुछ अलग सी मनाये हम 
इस  मंगल  बेला   पर , प्रेम  दीप  जलायें  हम 
हितेश कुमार शर्मा 

4 नवंबर 2015

कविता



ऐसा हिंदोस्तान चाहिए

राजेश त्रिपाठी


राम को चोट लगे  तो  रहीम  को  आंसू  आये। रहीम को रंज हो  तो  राम  सो  पाये ।।
गंगा-जमनी तहजीब जहां हरदम विराज करे । सभी  के लिए दिलों में मोहब्बत परवाज करे ।।
रस्मों  में फर्क  हो पर दिलों  में नहीं फिरकावाराना  वारदात   ना  हो   पाये     कहीं ।।
मंदिरों में शंखनाद हो, मसजिदों में गूंजे अजान। एकजहती की आला मिसाल बने हिंदोस्तान ।।
ऐसे भी हालात इन दिनों मुल्क में पाये गये हैं । अपने कभी थे पल भर में वे पराये हुए हैं ।।
भाई यहां देखो भाई का गला काट रहा है। सियासत का गंदा खेल दिलों  को  बांट  रहा है ।।
बरसों से सभी कौम के लोग साथ रहते आये हैं।फिर क्या हुआ जो बढ़ रहे नफरतों के साये हैं।।
क्यों शहर दर शहर खूंरेजी, कत्ल बवाल है। क्यों मजहबों के बीच दीवारें उठीं क्या मलाल है ।।
 हिंदोस्तानी हूं मैं, दिल में उठता सवाल है। जो भाई का घर फूंक रहा,वह भी न बचेगा खयाल है।।
मुल्क  की दुश्मन हैं जो ताकतें हमें बांट रही हैं । उनकी सियासत चल रही वो चांदी काट रही हैं ।।
आपस में  सब  भाई  हैं सब   हिंदोस्तानी  हैं । सबके दर्द  एक हैं सबकी इक जैसी कहानी  है ।।
हर हिंदोस्तानी को कसम है, है खुदा का वास्ता । हम मोहब्बत से जियें बस यही है सच्चा रास्ता ।।
पैगंबर से लेकर धर्मगुरु तक ने दिया प्रेम का संदेश। प्रेम जगत का सार है कुछ इससे नहीं विशेष ।।
गिले-शिकवे भूल कर यह अहद कर लें आज । मुल्क में अम्नोअमान हो लायेंगे मोहब्बतों का राज ।।
दिशा दिशा में दावानल क्यों,चप्पे चप्पे हाहाकार। शैतानी हैं कौन ताकतें करतीं नफरत का व्यापार ।।
ना तख्त,ना ताज, ना ऐश का सामान चाहिए।एकजहती, अमन का राज हो ऐसा हिंदोस्तान चाहिए ।।