तुझ से जो नज़र मिली |
तो मुस्कराना आ गया |
तुम्हारी जुल्फ उडी जो हवा में |
तो मौसम सुहाना आ गया |
खबर नहीं थी कि इक दिन |
इस दिल की ये आरज़ू पूरी होगी |
उमीदों का सवेरा होगा |
और हर शाम सिन्दूरी होगी |
सुर अपने आप जुड़ने लगे |
और मुझे गाना आ गया |
तुझ से जो नज़र मिली |
तो मुस्कराना आ गया |
तुम्हारी पायल की छम-छम पर |
दिल मेरा अब नाच उठा है |
हसरतों के दरिया में अब |
उफान सा कुछ आ चुका है |
भंवर के बीच फंसी नाव |
का अब ठिकाना आ गया |
तुझ से जो नज़र मिली |
तो मुस्कराना आ गया |
तेरे बदन की खुशबु |
हवाओं में जो मिल गयी |
भटकते हुए मुसाफिर को |
खोयी हुई मंजिल अब मिल गयी |
तुम आई तो इस गरीब के पास |
बादशाहों का खज़ाना आ गया |
तुझ से जो नज़र मिली |
तो मुस्कराना आ गया |
तेरे होंठो की लाली को देख |
फूल भी खिलना भूल गए |
गुजरी थी जो उम्र तेरे बिन |
जिंदगी क वो दिन फजूल गए |
ये तेरी नज़र का ही कमाल है |
कि मुसाफिर को मंजिल पाना आ गया |
तुझ से जो नज़र मिली |
तो मुस्कराना आ गया |
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ब्लौग सेतु....
26 फ़रवरी 2016
मुस्कराना आ गया (ग़ज़ल)
24 फ़रवरी 2016
तुमने कहा था... डॉ.पूनम गुप्त
तुमने कहा था मां
बहुत बोलती हो तुम
चपर चपर
बहस करती हो.
हर बात पे
उठाती हो सवाल
पूछती हो क्यों.
टिक पाओगी ?
ससुराल में ??
तब से मां
बस तब से
चुप रहना सीख लिया मैने
प्रश्न चिह्न की जगह
विराम लगाना सीख लिया
हर उठते हुए सवाल पर.
नहीं बोली थी मैं कुछ भी
जब बहुत कम करके
आंका गया था
तुम्हारे गाढ़े खून-पसीने से एकत्र
दहेज की वस्तुओं का मोल
नहीं बोली थी मैं
तब भी कुछ भी
जब उलाहने में
ज़िक्र लाया गया मायके का
और उठी थी उंगलियां
तुम्हारी दी हुई सीख पर
पी गई थी मैं मां,
अंदर ही अंदर
तेरे और अपने
अपमान का घूंट
पर चुप रही थी मैं मां,
मैने तुम से
कुछ भी तो नहीं कहा था.
मुझे टिकना था
रहना था वहां
जहां भेजा था तूने
डोली में बिठा कर मुझे.
मैं तब भी नहीं बोली थी मां
जब हर सुख-दुख में
मेरा साथ देने की
सौगन्ध उठाने वाला
तुम्हारा दामाद
फूट फूट के रोया था
दूसरी बेटी के जन्म पर
और जी भर के कोसा था
उसने मुझे और
उस नन्ही सी जान को
पी गई थी मैं
आंसुओं के साथ साथ
खून के घूंट भी
पर चुप रही थी मैं
कुछ भी तो नहीं बोली थी
मुझे साबित करना था
कि तुम्हारी बेटी
टिक सकती है,
रह सकती है
हर तरह की परिस्थिति में.
नहीं उंगली उठवानी थी मुझे
नहीं खड़े करने थे सवाल
तुम्हारे दिये गए संस्कारों पर.
और बोझ नहीं बनना था
मुझे फिर से
जिसे बड़ी मुश्किल से उतार
सुकून का सांस
ले पाए थे तुम सब.
पर मां
अब मैं चुप नहीं रहूंगी.
अब मैं बोलूंगी.
नहीं मारूंगी मैं हरगिज़
अपने ही अंश को
नहीं सहूंगी मैं कदापि
भ्रूण-हत्या के दंश को.
और हां !
तुम्हारे पढ़ाए पाठ के साथ-साथ
मैं अपनी बेटियों को
एक और पाठ भी पढ़ाऊंगी.
चुप रहने के साथ-साथ
मैं उन्हें बोलना सिखाऊंगी..
हां मां ,
उन्हें अन्याय के विरुद्ध
बोलना सिखाऊंगी.-डॉ.पूनम गुप्त
15 फ़रवरी 2016
धरती का भगवान
कब तक यूं दुखी रहेगा |
ये धरती का भगवान |
सबका ये है पेट भरता |
फिर भी रोज़ मरता किसान |
नंगी धरती का करता |
नित्य नया शृंगार |
इनकी ही बदौलत |
खेतों में आती बहार |
फिर क्यों पल- पल सहता अपमान |
सबका ये है पेट भरता |
फिर भी रोज़ मरता किसान |
करता खेतों की रखवाली |
मेहनत से आठों प्रहर |
कभी अपनों से दर्द सहता |
कभी कुदरत का कहर |
पल -पल खो रहा अपनी पहचान |
सबका ये है पेट भरता |
फिर भी रोज़ मरता किसान |
कुदरत के सूखे में |
आंसू के बीज बोता |
उमीदो के आसमान पर |
पानी की बूँद के लिए रोता |
क़र्ज़ तले दबा , देता अपनी जान |
सबका ये है पेट भरता |
फिर भी रोज़ मरता किसान |
इनका दुःख-दर्द सब भूले |
सरकार हो या जनता |
ये वो धरती पुत्र हैं |
जिनसे देश खुशहाल है बनता |
इनकी अनदेखी से, धूमिल हुई देश की शान |
सबका ये है पेट भरता |
फिर भी रोज़ मरता किसान |
गिरता , पड़ता , रोता , बिलखता |
पर कभी उठ नहीं पाता |
भीड़ भरी दुनिया में |
सदा अपने को अकेला पाता |
सबकुछ जान कर भी, हम बने अनजान |
सबका ये है पेट भरता |
फिर भी रोज़ मरता किसान |
वो दिन अब दूर नहीं |
जब इनकी अनदेखी पड़ेगी भारी |
बंज़र होगी सारी धरती |
और सूखी रहेगी हर क्यारी |
बनेगी हरीभरी धरा शमशान |
सबका ये है पेट भरता |
फिर भी रोज़ मरता किसान |
14 फ़रवरी 2016
कल की जिक्र कर ...
जुम्बिशे तो हर इक उम्र की होगी
कसमसाहटो की आहटे भी होगी ,
शायद इसलिए हि
कल की ज़िक्र कर
आज हि संवर जाते ,
ज़िस्त यू हि
कटती जाती
किसी ने कहाँ ?
क्यू कल की चिंता . .
वो भी आजमा कर..
रुकी हुई सी ज़ीस्त
कसमसाती ज़ज़्बातो की आहटें
शायद इसलिए हि
कल की ज़िक्र कर
आज हि संवर जाते हैं
हर उम्र की देहरी को
इस तरह लांघे जाते हैं
क्या जाने ?
इम्ऱोज का फ़र्दा क्या हो
पर हर ज़ख़्म पिए जाते हैं
हर खलिश को दफ़न कर
मुदावा खोज़ लाते हैं
शायद वो फ़र्दा हमारा होगा
ये सोच कर ,.
ज़ुम्बिशें ही सही
दरमांदा,पशेमान से मुलाकात भी
पर बाज़ाब्ता
हर उम्र के इक देहरी को
कुछ इस तरह
लांघे जाते हैं..
-पम्मी
चित्र गूगूल के संभार से
13 फ़रवरी 2016
है इनपे धिक्कार
सियासती ये लोग चंद, है इनपे धिक्कार ।
भारत में रहकर करे, पाक की जय जय कार ।।
पाक की जय जय कार, लगे विरोधी नारे ।
पुलिस महकमा शांत क्यों, देशद्रोही ये सारे ।।
हो उचित कार्रवाई जल्द, जेल में इनको डालो ।
देश रक्षा पर राजनीति, छोड़ सियासत वालो ।।
कश्मीर की आजादी, माँग है ये बदरंग ।
भारत से कैसे पृथक, है अभिन्न ये अंग ।।
है अभिन्न ये अंग, हिम्मत न कर इतना ।
जन-जन ये दिखला देगा, देश में ताकत कितना ।।
धैर्य है कमजोर नहीं, जो उठ गया शमशीर ।
बलुचिस्तान भी जायेगा, मांगा जो कश्मीर ।।
ले धर्म का नाम ये, करते हैं कुकर्म ।
मानवता के दुश्मन ये, नहीं कोई है धर्म ।।
नहीं कोई है धर्म, मातृभूमि न जाने ।
भारत को बर्बाद करें, ऐसा ये सब माने ।।
कब तक ऐसे देखते, रहेंगे हम जन आम ।
कुछ भी क्यों कर जाये ये, ले धर्म का नाम ।।
शहीद उसे है कह दिया, जो आतंक का नाम ।
ताक पे जिसने रख दिया, देश का ही सम्मान ।।
देश का ही सम्मान बस, करो अगर है रहना ।
देश की जनता जागी है, अब नहीं है सहना ।।
शर्म करो ओ गद्दारों, आतंक के मुरीद ।
देश के लिए जान दे, हैं बस वही शहीद ।।
-प्रदीप कुमार साहनी
12 फ़रवरी 2016
हिन्द के वीर -II
हिन्द धरा है परम वीरों की |
करूँ मैं नमन बारम्बार |
वतन के हित में जो बलि हुए |
वो भारत के हैं अमूल्य उपहार |
हैं वो बड़े भाग्यशाली |
जो वतन के लिए जान गवांते |
नहीं मिलता ऐसा नसीब सबको |
सही में वो माटी का क़र्ज़ चुकाते |
है इतिहास सदा ही साक्षी |
कि जीत हमारे कदम चूमती है |
दुश्मन थर थर कांपते हैं |
नज़र वीरों की जिधर घूमती है |
हिन्द इतिहास भरा है वीरों से |
माटी इसकी चांदी -सोना है |
बहुत हुआ अब और नहीं सहेंगे |
अब कोई वीर हमें नहीं खोना है |
कफ़न तिरंगे का जो |
शान से ओढ़ा करते हैं |
फिर दुश्मन की तो बात ही क्या |
मौत से भी नहीं डरा करते हैं |
ऐसे वीर योद्धा सदा ही |
इतिहास में अमर हो जाया करते हैं |
उनकी वीरता की गाथा, इंसान तो क्या |
देवता भी गाया करते हैं |
उनकी पावन चिता की राख को |
आओ निज शीश धरे हम |
उनके बलिदान को याद कर |
अश्रूं संग नयन भरे हम |
बह चली अब हर हिंदुस्तानी में |
वीरता की रसधार है |
ऐ खुदा ! अगले जन्म हमें भी सैनिक कीजो |
ये अब हर दिल की वीर पुकार हैं |
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