मंद मंद आंसू,आंखो में प्यास,सरकारी चिट्टी
सूखा बदन,माथे से लगाए अपने खेत की मिट्टी
सूखा बदन,माथे से लगाए अपने खेत की मिट्टी
दिल में उम्मीद,सीने में दर्द,भूखा और प्यासा
कल दिखा इक किसान मुझे ओढ़े निराशा
बंगला था साहब का,साहब भी आलीशान था
बैठा था बाहर भूखा इसी देश का किसान था
वो आया था आशा लिए,संग लिए बेटी छोटी
एक पन्ना लिए हाथ में,बस मांग थी दो रोटी
जंतर मंतर पे धरना करते हुए
मैने देखा है किसान को मरते हुए
-कवि शुभम सिसौदिया
बाराबंकी
ss8341916@gmail.com
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