
सर्व धरम पर समदर्शी भाव , है हिन्द
ह्रदय विशाल |
है तुच्छ सोच उनकी जो उठाते
असहिष्णुता के सवाल |
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शांत प्रिय जीवन यहाँ का , और
सुरक्षित है हर दीवार |
पर इसकी विकास की राहों में ,
रोड़े अटकाते कुछ गद्दार |
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जिन्हे दिल में बसाया , वो ही
दिल में खंजर चुभोते हैं |
हिन्द प्रेम का बदला वो नफरत की
भाषा से चुकाते हैं |
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देश द्रोही घोषित करो उनको ,
नहीं जिन्हे राष्ट्र से प्यार |
होगा भला अगर छीन लो उन
से, यहाँ रहने का अधिकार |
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धन- दौलत और शोहरत के ढेर पर
जिनको है बैठाया |
विष घोल कर दूध में , उन्होंने हमें है पिलाया |
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हैं कोई इस दुनिया में जो हिन्द
को आँख दिखा सके |
है कोई जो इसकी सहनशीलता
को मिटा सके |
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हैं गद्दार, जो शांत और शीतल जल
पर पत्थर मार रहे हैं |
और भाई चारे की दीवार को जो जड़
से उखाड़ रहे हैं |
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राष्ट्र- हित में अब हर भारतीय
को अपना फ़र्ज़ निभाना होगा |
कर बहिष्कार ऐसे लोगो का, उनको सबक सिखाना होगा |
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हितेश कुमार
शर्मा |
क्या बाद है...
जवाब देंहटाएंसुंदर भाव...
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (28-11-2015) को "ये धरा राम का धाम है" (चर्चा-अंक 2174) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ब्लॉग बुलेटिन - जन्म दिवस स्वर्गीय हरिवंश राय 'बच्चन' में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंसामयिक रचना
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