ब्लौग सेतु....

22 दिसंबर 2014

पीड़ा -- आशा सक्सेना


जीवन के अहम् मोड़ पर
लिए मन में दुविधाएंअनेक
सौन्दर्य प्रेम में पूरी  डूबी
सूरत सीरत खोज रही |
एक विचार एक कल्पना
 जिससे बाहर ना आ पाती
डूबती उतराती उसी में
कल्पना की मूरत खोजती |
उसका वर कैसा हो
किसी ने जानना न चाहा
पैसा प्रधान समाज ने
उसे पहचानना नहीं चाहा |
कहने को उत्थान हुआ
नारी  का महत्त्व बढ़ गया
पर इतने अहम मुद्दे पर
उससे पूछा तक न गया  |
विवाह उसे करना था
निर्णय लिया परिवार ने
सारे अरमान जल गए
हवनकुंड की अग्नि में |
नया घर नया परिवेश
धनधान्य की कमीं न थी
पर वर ऐसा न पाया
जिसकी कल्पना की थी |
भारत में जन्मीं थी
संस्कारों से बंधी थी
धीरे धीरे  रच बस गई
ससुराल के संसार में |
कभी कभी मन में
एक हूक सी उठती
प्रश्न सन्मुख होता
क्या यही कल्पना थी |
अब मन ने नई उड़ान भरी
हुई व्यस्त सृजन करने में
खोजती सौन्दर्य अपने कृतित्व में
हुई सम्पूर्ण खुद ही में !

लेखक परिचय - आशा सक्सेना


16 दिसंबर 2014

मौसमे-मुहब्बत

मुहब्बतों के मौसम में यूँ तूफानों का आना क्यों |
बातों हों तो प्यार की ये दर्द भरा अफ़साना क्यों ||

मैं सुलझाऊं जुल्फ़ें तेरी आ मोतियन से माँग भरूँ |
बैठ जा नज़रों के आगे शर्मो-हया का बहाना क्यों ||

बरसों से बसेरा दिल है तेरा इस दीवाने-यार का |
पूछ रहे गैरों से जाकर मन में बसा ठिकाना क्यों ||

रिमझिम करते आए बादल सावन ने रंग घोला है |
मुहब्बतों की बारिशें हैं जलता मगर जमाना क्यों ||

कहले जो कुछ कहना मुझसे मैं तेरी सब सुन लूँगा |
मुहब्बत के झगड़ों की बातें गैरों को बतलाना क्यों ||

आँखों में उमड़े हैं अरमां झिलमिल करते सपने हैं |
उड़ना हैं अंबर से आगे आँधी से घबराना क्यों ||


...............................................© केशरीलाल स्वामी केशव

खंडित साँसें -- साधना वैद


खुशियों का संसार सुहाना टूट गया,
जनम-जनम का बंधन पल में छूट गया,
जिसके नयनों में मीठे सपने रोपे थे
पलक मूँद वह जीवन साथी रूठ गया !
मन के देवालय की हर प्रतिमा खण्डित है ,
जीवन के उपवन की हर कलिका दण्डित  है,
जिसकी हर मंजिल में जीवन की साँसें थीं 
चूर-चूर हो शीशमहल वो टूट गया !


12 दिसंबर 2014

पवन बहे

सननन सननन पवन बहे,
घनन घनन घन गर्जन करे ।
हुलस-हुलस कर नाचे मनवा,
महके उपवन सुमन झरे ॥

                       बहकी कलियां महके फूल,
                       भंवरे के मन उठता शूल ॥
                       तितली रानी रंग भरे,
                       स्वर्णमयी लगती है धूल ॥

कोकिल केकी करें धमाल,
मस्तानी हिरणों की चाल ।
उड़ते पांखी गाएं गीत,
सूरज सब पर मले गुलाल ॥

                       झूमें लहरें हरियल खेत,
                       सोना बनकर निखरी रेत ।
                       रंग लाई मेहनत अब देखो,
                       धरती ने उमड़ाया हेत ॥

आज खुशी क्या ठिकाना
गाती है कुदरत खुद गाना ।
करवट ली किस्मत ने मेरी,
उपजी हैं फसलें भी नाना ॥

                       चारों और आशा ही आशा,
                       दूर कहीं भागी निराशा ।
                       मचला जाए मनवा मेरा,
                       मौसम भी बहका जरा सा ॥
                           


-    केशरीलाल स्वामी केशव

6 दिसंबर 2014

माँ ...........तेरे जाने के बाद






जब मै जन्मा तो मेरे लबो सबसे पहले तेरा नाम आया,
बचपन से जवानी तक हर पल तेरे साथ बिताया.
लेकिन पता नहीं तू कहा चली गयी रुशवा होकर,
की आज तक तेरा कोई पौगाम ना आया.
मै तो सोया हुआ था बेफिक्र होकर,
और जब जागा तो न तेरी ममता, ना तुझे पाया.
मुझसे क्या ऐसी खता हो गयी,
जिसकी सजा दी तूने ऐसी की मै सह ना पाया.
तू छोड़ गयी मुझे यु अकेला,
मै तो तुझे आखरी बार देख भी ना पाया.
तू तो मुझे एक पल भी छोड़ती नहीं थी,
फिर तूने इतना लम्बा अरसा कैसे बिताया.
तू इक बार आ जा मुझसे मिलने,
देखना चाहता हूँ माँ तेरी एक बार काया.