सच्चाई फुटपाथ पर, बैठी लहू-लुहान.
झूठ निरंतर बढ़ रहा,निर्भय सीना तान.
उन्नति करते जा रहे,अब झूठे-मक्कार.
होगा जाने किस तरह,सच का बेड़ा पार.
झूठ तुम्हारे हो गए,कितने लम्बे पैर.
सच की इज़्ज़त दांव पर, राम करेंगे खैर.
सच के मुँह तक से नहीं, निकल रही आवाज़.
मगर झूठ के शीश पर,हरदम सोहे ताज.
सच पर चलने की हमें,हिम्मत दे अल्लाह.
काँटों से भरपूर है, सच्चाई की राह.
झूठ तुम्हारे हो गए,कितने लम्बे पैर.
जवाब देंहटाएंसच की इज़्ज़त दांव पर, राम करेंगे खैर.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
अत्यंत कसक , व्यंग , और लाचारियों को व्यक्त करता .. सुंदर काव्य प्रतिभा जी बिलकुल सहमत
हटाएंKatu satya zamane ke rang badal gaye hai....jhooth ka sikka chalta hai....
जवाब देंहटाएंअति सुंदर , सत्य से ओतप्रोत , अनगिनत असंख्य भाव को दर्शाता अदभूत रूप से मन की तड़प को झलकाता काव्य , मन प्रफुल्लित करता ये काव्य
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 12 अक्टूबर 2019 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!