जी करता है
पैमाने में भर लूँ जाम
खाली कर दूँ
अपनी पूरी शाम !
अब कोई बात ना रहे
कहने को
कोई बादल ना उमड़े
बरसने को
कि काश मैं रोक पाऊँ
बहते मन को
दे सकूँ कोई मोड़ नया
जीवन को
लौटना मुश्किल
जो बढ़ गया आगे
बँधता हूँ, बँधता हूँ
बाँध रहे कितने धागे
दिन उतरता है
रात चढ़ता है
पर शाम ठहरा रहता है कहीं
मेरे संग, मेरे अंदर
आखिर क्यों समझ से परे
जीवन का यह आयाम !
जी करता है
पैमाने में भर लूँ जाम
खाली कर दूँ
अपनी पूरी शाम !
लेखक परिचय - शिवनाथ कुमार
bahut sundar
जवाब देंहटाएंकई बार ऐसा करना पड़ता है ... भूलना पड़ता है सब कुछ इस जाम के सहारे ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना ...
बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना....
जवाब देंहटाएं