ब्लौग सेतु....

29 अक्टूबर 2013

आज का आदमी

 





राजेश त्रिपाठी

आज का आदमी

लड़ रहा है,

कदम दर कदम,

एक नयी जंग।

ताकि बचा रहे उसका वजूद,

जिंदगी के खुशनुमा रंग।

जन्म से मरण तक

बाहर से अंतस तक

बस जंग और जंग।

जिंदगी के कुरुक्षेत्र में

वह बन गया है

अभिमन्यु

जाने कितने-कितने

चक्रव्यूहों में घिरा हुआ

मजबूर और बेबस है।

उसकी मां को

किसी ने नहीं सुनाया

चक्रव्यूह भेदने का मंत्र

इसलिए वह पिट रहा है

यत्र तत्र सर्वत्र।

लुट रही है उसकी अस्मिता,

उसका स्वत्व

घुट रहे हैं अरमान।

कोई नहीं जो बढ़ाये

मदद का हाथ

बहुत लाचार-बेजार है

आज का आदमी।

19 अक्टूबर 2013

........ दरिंदा :)

सभी साथियों को मेरा नमस्कार आप सभी के समक्ष पुन: उपस्थित हूँ प्रसिद्ध कवि भवानीप्रसाद मिश्र जी की रचना...... दरिंदा के के साथ उम्मीद है आप सभी को पसंद आयेगी.......!!


दरिंदा
आदमी की आवाज़ में
बोला

स्वागत में मैंने
अपना दरवाज़ा
खोला

और दरवाज़ा
खोलते ही समझा
कि देर हो गई

मानवता
थोडी बहुत जितनी भी थी
ढेर हो गई !

- - भवानीप्रसाद मिश्र



12 अक्टूबर 2013

दो नयन मेरी प्रतीक्षा में खड़े हैं

प्रस्तुत है श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की यह कविता जो मुझे बहुत प्रिय है .............

पंथ जीवन का चुनौती दे रहा है हर कदम पर ,
आखिरी मंजिल नहीं होती कहीं भी दृष्टिगोचर ,
धूलि से लद ,स्वेद से सिंच, हो गई है देह  भारी,
कौन - सा विश्वास मुझको खींचता जाता निरंतर !

पंथ क्या, पथ की थकन क्या
स्वेद कण क्या,
दो नयन मेरी प्रतीक्षा में खड़े हैं !

एक भी संदेश आशा का नहीं देते सितारे ,
प्रकृति ने मंगल शकुन - पथ में नहीं मेरे संवारे ,
विश्व का उत्साहवर्धक शब्द भी  मैंने सुना कब ,
किन्तु बढ़ता जा रहा हूँ लक्ष्य पर किसके सहारे !

विश्व की अवहेलना क्या ,
अपशकुन  क्या, दो नयन मेरी प्रतीक्षा में खड़े हैं !

चल रहा है पर पहुंचना लक्ष्य पर इसका अनिश्चित ,
कर्म कर भी कर्मफल से  यदि  रहा यह पथ वंचित,
विश्व तो उस पर हंसेगा ,खूब भूला ,खूब भटका !
किन्तु  गा  यह पंक्तियाँ दो वह करेगा धैर्य संचित !

व्यर्थ जीवन ,व्यर्थ जीवन
की लगन क्या ,
दो नयन मेरी प्रतीक्षा में खड़े हैं ?

अब नहीं उस पार का भी भय मुझे  कुछ सताता ,
उस तरफ के लोक से भी जुड़ चुका है एक नाता ,
मैं भी उसे भूला नहीं वह भी नहीं भूली मुझे भी ,
मृत्यु पथ पर भी बढूंगामोद से यह गुनगुनाता -

अंत यौवन ,अंत जीवन
का, मरण क्या

दो नयन मेरी प्रतीक्षा में खड़े हैं !

9 अक्टूबर 2013

सागर लम्बी सांसें भरता है















प्रस्तुत है तार सप्तक के प्रमुख कवियों में से एक - रामविलास शर्मा की यह कविता, जो मुझे बहुत प्रिय है ........

सागर लम्बी सांसें भरता है
सिर धुनती है लहर – लहर

बूँदी बादर में एक वही स्वर
गूँज रहा है हहर - हहर

सागर की छाती से उठकर
यह टकराती है कहाँ लहर ?

जिस ठौर हृदय में जलती है
वह याद तुम्हारी आठ प्रहर

बस एक नखत ही चमक रहा है
अब भी काली लहरों पर

जिसको न अभी तक ढँक पाए हैं
 सावन के बूँदी - बादर

यह जीवन यदि अपना होता
यदि वश होता अपने ऊपर

यह दुखी हृदय भी भर आता
भूले दुख से जैसे सागर

वह डूब गया चंचल तारा
जो चमक रहा था लहरों पर

सावन के बूँदी - बादर में
अब एक वही स्वर हहर हहर

सागर की छाती से उठकर
यह टकराती है कहाँ लहर ?

जिस ठौर नखत वह बुझ कर भी
जलता रहता है आठ पहर

सागर लम्बी सांसें भरता है
सिर धुनती है लहर - लहर

पर आगे बढ़ता है मानव
अपनेपन से ऊपर उठकर

आगे सागर का जल अथाह
ऊपर हैं नीर भरे बादर

बढ़ता है फिर भी जनसमूह
जल की इस जड़ता के ऊपर

बैठा है कौन किनारे पर
यह गरज रहा है जन - सागर?

पीछे हटकर सर धुनकर भी
आगे बढती है लहर - लहर

दुःख के इस हहर - हहर में भी
ऊँचा उठता है जय का स्वर

सीमा के बंधन तोड़ रही है
सागर की प्रत्येक लहर 

5 अक्टूबर 2013

........है जिंदगी एक छलावा -- श्रीमती आशा लता सक्सेना जी :)



है जिंदगी एक छलावा
पल पल रंग बदलती है
है जटिल स्वप्न सी
कभी स्थिर नहीं रहती |
जीवन से सीख बहुत पाई
कई बार मात भी खाई
यहाँ अग्नि परीक्षा भी
कोई यश न दे पाई |
अस्थिरता के इस जालक में
फँसता गया ,धँसता गया
असफलता ही हाथ लगी
कभी उबर नहीं पाया |
रंग बदलती यह जिंदगी
मुझे रास नहीं आती
जो सोचा कभी न हुआ
स्वप्न बन कर रह गया |
छलावा ही छलावा
सभी ओर नज़र आया
इससे कैसे बच पाऊँ
विकल्प नज़र नहीं आया  !!

--  आशा लता सक्सेना 

3 अक्टूबर 2013

तुम गर जरा मुझे प्यार दो


-राजेश त्रिपाठी

मेरे गीतों को दे दो मधुर रागिनी, मेरे सपनों को होने साकार दो।

सारी दुनिया की खुशियां मिल जायेंगी, तुम गर जरा मुझे प्यार दो।।

कामनाएं तड़पती, सिसकती रहीं।

जिंदगी इस कदर दांव चलती रही।।

हम वफाओं का दामन थामे रहे।

हर कदम जिंदगी हमको छलती रही।।

एक उजडा चमन है ये जीवन मेरा, फिर संवरने का इसको आधार दो। (सारी दुनिया...)

प्रार्थनाएं सभी अनसुनी रह गयीं।

याचनाएं न जाने कहां खो गयीं।।

हर तमन्ना हमारी अधूरी रही।

गम का पर्याय ये जिंदगी हो गयी।।

जिंदगी जिसके खातिर तरसती रही, सुख का वही मुझको संसार दो। (सारी दुनिया...)

खुलें जब तुम्हारे नयन मदभरे।

जैसे सूरज को फिर से रवानी मिले।।

मुसकराओ तो ऐसा एहसास हो।

फूलों को इक नयी जिंदगानी मिले।।

एक मूरत जो है कल्पना में बसी, उसे रंग दो, आकार दो। (सारी दुनिया...)

कल्पनाओं को मेरी नयी जान दो।

गीतों को इक नया उनमान दो।।

दो मुझे जिंदगी के नये मायने।

मेरे होने की इक पहचान दो।।

जिसकी यादों में जागा किये ये नयन, उसी रूप का उनको दीदार दो। (सारी दुनिया...)

2 अक्टूबर 2013

शत बार प्रणाम

शांति, अहिंसा का जो पुजारी, जीवन ऐसा जैसे फकीर।
सत्याग्रह से बदल के रख दी जिसने भारत की तकदीऱ।।
हमे दिलायी उसने आजादी, हम भूल गये उसके आदर्श।
रामराज्य का सपना टूटा, जिससे रो रहा है भारतवर्ष ।
आज उन्हें जन्मदिवस पर करते हैं शत बार प्रणाम।
जिनके कंठ से गूंजा था रघुपति राघव राजा राम़ ।।