प्रस्तुत है श्री
अटल बिहारी वाजपेयी जी की यह कविता जो मुझे बहुत प्रिय है .............
पंथ जीवन का
चुनौती दे रहा है हर कदम पर ,
आखिरी मंजिल नहीं
होती कहीं भी दृष्टिगोचर ,
धूलि से लद ,स्वेद से सिंच, हो गई है देह भारी,
कौन - सा विश्वास
मुझको खींचता जाता निरंतर !
पंथ क्या, पथ की थकन क्या
स्वेद कण क्या,
दो नयन मेरी
प्रतीक्षा में खड़े हैं !
एक भी संदेश आशा
का नहीं देते सितारे ,
प्रकृति ने मंगल
शकुन - पथ में नहीं मेरे संवारे ,
विश्व का
उत्साहवर्धक शब्द भी मैंने सुना कब ,
किन्तु बढ़ता जा
रहा हूँ लक्ष्य पर किसके सहारे !
विश्व की अवहेलना
क्या ,
अपशकुन क्या, दो नयन मेरी प्रतीक्षा में खड़े हैं !
चल रहा है पर
पहुंचना लक्ष्य पर इसका अनिश्चित ,
कर्म कर भी
कर्मफल से यदि रहा यह पथ वंचित,
विश्व तो उस पर
हंसेगा ,खूब भूला ,खूब भटका !
किन्तु गा यह पंक्तियाँ दो वह करेगा धैर्य संचित !
व्यर्थ जीवन ,व्यर्थ जीवन
की लगन क्या ,
दो नयन मेरी
प्रतीक्षा में खड़े हैं ?
अब नहीं उस पार
का भी भय मुझे कुछ सताता ,
उस तरफ के लोक से
भी जुड़ चुका है एक नाता ,
मैं भी उसे भूला
नहीं वह भी नहीं भूली मुझे भी ,
मृत्यु पथ पर भी
बढूंगा, मोद से यह गुनगुनाता -
अंत यौवन ,अंत जीवन
का, मरण क्या
दो नयन मेरी
प्रतीक्षा में खड़े हैं !