सभी साथियों को मेरा नमस्कार आप सभी के समक्ष पुन: उपस्थित हूँ सदा जी की रचना......फिसल गया वक्त के साथ उम्मीद है आप सभी को पसंद आयेगी.......!!
फिसल गया वक्त ....
मैं किसी की आंख का ख्वाब हूं,
किसी की आंख का नूर हूं ।
भूल गया सब कुछ मैं तो खुद,
अपने आप से भी दूर हूं ।
हस्ती बनने में लगा वक्त मुझको,
पर अब मैं किसी का गुरूर हूं ।
फिसल गया वक्त रेत की तरह,
पर मैं ठहरा हुआ जरूर हूं ।
हक किसी का मुझपे मुझसे ज्यादा है,
मैं अपने वादे के लिये मशहूर हूं .........!!
-- सदा जी
फिसल गया वक्त ....
मैं किसी की आंख का ख्वाब हूं,
किसी की आंख का नूर हूं ।
भूल गया सब कुछ मैं तो खुद,
अपने आप से भी दूर हूं ।
हस्ती बनने में लगा वक्त मुझको,
पर अब मैं किसी का गुरूर हूं ।
फिसल गया वक्त रेत की तरह,
पर मैं ठहरा हुआ जरूर हूं ।
हक किसी का मुझपे मुझसे ज्यादा है,
मैं अपने वादे के लिये मशहूर हूं .........!!
-- सदा जी
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार (16-01-2014) को "फिसल गया वक्त" चर्चा - 1494 में "मयंक का कोना" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Shukriya :))
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