पीर प्रवाहित है रग -रग में ,
दर्द समाहित है नस -नस में ,
मुझमें पीड़ा समाधिस्थ है ,
प्राण नियंत्रण से बाहर है //
रेचक करना भूल गई हूँ ,
कुम्भक की विधि याद नहीं है,
कैसे ध्यान -धारणा हो अब ,
नाड़ी शोधन ज्ञात नहीं है
प्रियतम प्रेम प्रयाण से पहले
योग सुभग इक़ सपना भर है //
विचलित चित्त न धीरज जाने ,
विरहा की गति चरम हुई है ,
ब्रह्मरन्ध्र तुममें विलीन है ,
साँसों की गति विषम हुई है /
आयुष लेकर क्या करना है ,
बहुत निकट नटवर नागर है //
आठों प्रहर साधनामय हैं ,
शुभ संकेत प्रदर्शित होते /
चारों धाम मिले मन भीतर ,
अचल सुहाग समर्पित होके /
अंतर्ज्योतित अभयानंदित ,
ह्रदय सुखद दुख का सागर है //
@-भावना
दर्द समाहित है नस -नस में ,
मुझमें पीड़ा समाधिस्थ है ,
प्राण नियंत्रण से बाहर है //
रेचक करना भूल गई हूँ ,
कुम्भक की विधि याद नहीं है,
कैसे ध्यान -धारणा हो अब ,
नाड़ी शोधन ज्ञात नहीं है
प्रियतम प्रेम प्रयाण से पहले
योग सुभग इक़ सपना भर है //
विचलित चित्त न धीरज जाने ,
विरहा की गति चरम हुई है ,
ब्रह्मरन्ध्र तुममें विलीन है ,
साँसों की गति विषम हुई है /
आयुष लेकर क्या करना है ,
बहुत निकट नटवर नागर है //
आठों प्रहर साधनामय हैं ,
शुभ संकेत प्रदर्शित होते /
चारों धाम मिले मन भीतर ,
अचल सुहाग समर्पित होके /
अंतर्ज्योतित अभयानंदित ,
ह्रदय सुखद दुख का सागर है //
@-भावना
भावपूर्ण सुंदर कविता
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (09-02-2014) को "तुमसे प्यार है... " (चर्चा मंच-1518) पर भी होगी!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
कभी कभी पीड़ दर्द कितना सुखदायी होता है
जवाब देंहटाएंजब यही नटवर नागर से मिलन की राह बन जाए
बहुत सुन्दर !
Sundar
जवाब देंहटाएंriderfreelance.blogspot.in
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंपीर प्रवाहित है रग -रग में ,
जवाब देंहटाएंदर्द समाहित है नस -नस में ,
मुझमें पीड़ा समाधिस्थ है ,
प्राण नियंत्रण से बाहर है //
रेचक करना भूल गई हूँ ,
कुम्भक की विधि याद नहीं है,
कैसे ध्यान -धारणा हो अब ,
नाड़ी शोधन ज्ञात नहीं है
प्रियतम प्रेम प्रयाण से पहले
योग सुभग इक़ सपना भर है //
विचलित चित्त न धीरज जाने ,
विरहा की गति चरम हुई है ,
ब्रह्मरन्ध्र तुममें विलीन है ,
साँसों की गति विषम हुई है /
आयुष लेकर क्या करना है ,
बहुत निकट नटवर नागर है //
बेहद की सुन्दर रचना है कोमल शब्दावली।
गीत
जवाब देंहटाएंपीर प्रवाहित है रग -रग में ,
दर्द समाहित है नस -नस में ,
मुझमें पीड़ा समाधिस्थ है ,
प्राण नियंत्रण से बाहर है।
रेचक करना भूल गई हूँ ,
कुम्भक की विधि याद नहीं है,
कैसे ध्यान -धारणा हो अब...
कविता मंच पर भावना तिवारी
सुन्दर भाव विरेचक गीत
अदभुत
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