ब्लौग सेतु....

31 मार्च 2014

वेग पधारो सिंहवाहिनी हम करते आवाहन












हे माता पर्वतवाली त्रस्त  भक्तगण आज।
कृपा करो हे माता दुखिया सकल समाज।।
तुमने जाने कितने राक्षस हे माता संहारे।
मानव तन ले उनमें कुछ हैं आन पधारे।।
ललनाओं की लाज लूटते,करते ये हत्याएं।
पापकर्म में इतने डूबे रही ना अब सीमाएं।।
भारतवासी त्रस्त बहुत हैं जपते तेरा नाम।
इनके चलते दुख भरे हैं उनके सुबहो शाम।।
हे मां अपने गणों संग अब तो वेग  पधारो।
दुष्टों से पीड़ित है धरती आकर उसे उबारो।।
नवरात्रि में भक्तगण करते हैं तेरा आराधन।
वेग पधारो सिंहवाहिऩी हम करते आवाहन।।
·       आप सभी को नवरात्र के पावन पर्व की मंगलकामनाएं



25 मार्च 2014

क्यों यहां जनाब आये हैं

वोटों की खातिर फिर देखो आली जनाब आये हैं।
लेकर के पिटारे में कितने हसीन ख्वाब आये हैं।।
      रंग कोई हो इन सबके इरादे तो एक  हैं।
      मत पूछिए कौन बुरे यहां कौन नेक हैं।।
      सबका मकसद कुर्सी बस कुर्सी ही कुर्सी है।
      जानिए इनमें कौन असली कौन फर्जी है।।
यह पूछिए क्या बीते पांच सालों का हिसाब लाये हैं।
अब तक क्यों थे गायब, क्यों भला जनाब आये हैं।।
सज गयी चुनावों की दुकान, आये कैसे-कैसे श्रीमान।
इक कहता बस मेरी बात सुनो, दूजा तो है बेईमान।।
उसको दिया मुल्क तुमने, बेच खायेगा हिंदुस्तान।
मतदाता चकित बड़ा, किस पर कीजै इत्मीनान।।
इक नागनाथ दूजा है सांपनाथ, कैसे-कैसे ये अजाब लाये हैं।
वादों की दौलत साथ में, लुभावने नारे भी लाजवाब लाये हैं।।
      देश की जनता भूखी है, महंगाई की मारी है।
      झूठे विकास के दावों से वह बेचारी हारी है।।
      आंकड़े गवाही देते हैं, भूखी आधी आबादी है।
      हम खाद्यान्न में निर्भर हैं हो रही मुनादी है।।
हर बशर परीशां, है हौलनाक मंजर बेहिसाब आये हैं।
जाने नेता आखिर किस मुश्किल का जवाब लाये हैं।।
      साम्यवाद के जीवित शव पर मानवता रोती है।
      किसी देश में क्या ऐसी भी आजादी होती है।।
      ललनाओं की लाज छिन रही, मजलूमों की रोटी।
      स्वार्थी नेता खेल रहे हैं, बस राजनीति की गोटी।।
क्या-क्या इनको करना है इसकी ये किताब लाये हैं।
आपकी वोटों की आखिर, ये दर-दर बेताब आये हैं।।
      पूछो ये क्या देंगे भूखों को रोटी, प्यासों को पानी।
      क्या कभी सुधारेंगे ये मजलूमों की बेबस जिंदगानी।।
      या ये बरसाती मेढ़क हैं कुछ दिन तो यों टर्रायेंगे।
      फिर सुविधा पा, चुप होकर दड़बों में छिप जायेंगे।।
बतलाइए क्या मुश्किलों का क्या कोई जवाब लाये हैं।
गर नहीं तो किब्लां यह कहे क्यों यहां जनाब आये हैं।।
                        -राजेश त्रिपाठी

16 मार्च 2014

होली की शुभकामनाएं




बदरंग हो गयी दुनिया आज नफरत के रंग से।


आओ संवार ले इसे हम मोहब्बत के रंग से।।


जिन होंठों पर दर्द टिका है मुसकान भरे हम।


हम ऐसा करें जतन कि सबके दूरे होएं गम।।


देखो बसंत आ गया अब कली-कली मुसकायी।


बूढ़ों में छायी मस्ती यहां बहक रही तरुणाई।।


भौंरे कलियों पर मंडरायें, करते हैं अठखेली।


भींगी चूनर संभाल रही कोई नार अलबेली।।


गांव-नगर में मचा हुआ है आज बड़ा हुड़ंदंग।


नस-नस में सिहरन है, थिरक रहा हर अंग।।


लोकलाज के बंधन टूटे, मुक्त हुए मन प्राण।


बूढ़े-बच्चे में भेद नहीं, सबमें खुशी समान।।


कहीं डफ की तान पर झूम रहे हैं जन सारे।


कोई भंग की तरंग में तोड़ रहा बंधन सारे।।


ये मधुर रंग भारत के हैं इसकी  पहचान।


ये त्योहार अनोखे हैं खुशिय़ों की जान।।


माथे पर आंके सादर इक गुलाल का टीका।


इस मौसम में खाली माथा, लगता है फीका।।


मस्ती का त्योहार खुशियां भर लें तन-मन में।


रंगों का दें साथ, रंग भी जरूरी हैं जीवन में।।

                                                                          -राजेश त्रिपाठी

8 मार्च 2014

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर मातृशक्ति को नमन



मातृशक्ति को नमन कर रहे महिला दिवस है आज।
सुखमय होगा संसार अगर नित पूजे इन्हें समाज।।
नारी का मत करो निरादर नारी समाज की जान।
जहां-जहां हो इसकी पूजा, वहां-वहां रमते भगवान।।
अबला नहीं ये सबला है, यह है शक्ति का पुण्य प्रतीक।
इससे ही परिवार है चलता, बनता है घर भी रमणीक।।
कही परिचारिका, मां, कहीं पत्नी, कहीं ये प्यारी बहना है।
इसका तिरस्कार मत करना, नारी समाज का गहना है।।
यह है तो ममता है, है सेवा और सरसता इससे प्यार है।
इसके कदमों में ही स्वर्ग है, आंखों में भरा दुलार है।।
इसे सजा लो, दिल में बसा लो, यह है फूल गुलाब का।
प्यार की खुशबू से भर जायेगा, घर-आंगन जनाब का।।
जो नारी का करें अनादार, इसको जो भी सताते हैं।
वे पापी दुख भोग धरा पर, रौरव नरक को जाते हैं।।
इसे प्यार, सत्कार दीजिए, और दीजिए इतना मान।
पत्थर को क्या पूजना, इन्हें मान लीजै भगवान।।
नारी से ही जन्में राम, कृष्ण औ मुनि अति ज्ञानी।
वेद-पुराणों में भी वर्णित, नारी की दिव्य कहानी ।।
नारी सुख का आगार अगर ये बात जान जाये संसार।
दुख मिटेगा, सुख बरसेगा, घर-घर में बस होगा प्यार।।
                              -राजेश त्रिपाठी
              


 

3 मार्च 2014

मुझे इंतजार है



-राजेश त्रिपाठी
हां मुझे इंतजार है
कश्मीरी पंडितों की घर वापसी का
बरसों से उजड़े उनके घरों के
फिर आबाद  होने का
मुझे इंतजार है
दहशतजदा आंखों में
मुसकानों के
फूल खिलने का
बिछड़े दिलों के मिलने का
भटके युवा कदमों के घर वापसी का
केसर क्यारी के
बेखौफ लहलहाने का
मुझे इंतजार है
मसजिदों से अजान
मंदिरों से आरती के स्वर
एक साथ गूंजने का
मुझे इंतजार है
भारत की गंगा-जमुनी
संस्कृति के सरसने
नफरत की आग बुझने का
मुझे इंतजार है
कश्मीर की कराह,
असम का आर्तनाद,
कालाहांडी की करुणा
इनके अवसान का
मुझे इंतजार है
मुझे इंतजार है
उस दिन का
जब आंखों में आंसू
ना होंठों में रंजिश हो
हर तरफ खुशी का गुजर हो
हां मुझे इंतजार है
उस दिन का
जब मैं गर्व से कह सकूं
सारे जहां से अच्छा
हिंदोस्तां हमारा।