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16 दिसंबर 2014

खंडित साँसें -- साधना वैद


खुशियों का संसार सुहाना टूट गया,
जनम-जनम का बंधन पल में छूट गया,
जिसके नयनों में मीठे सपने रोपे थे
पलक मूँद वह जीवन साथी रूठ गया !
मन के देवालय की हर प्रतिमा खण्डित है ,
जीवन के उपवन की हर कलिका दण्डित  है,
जिसकी हर मंजिल में जीवन की साँसें थीं 
चूर-चूर हो शीशमहल वो टूट गया !


2 टिप्‍पणियां:

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