मां
-राजेश त्रिपाठी
ममता की छांव सी
बेघर के ठांव सी
जाड़े में धूप सी
यानी अनूप सी
मां
गंगा की धार सी
बाढ़ में कगार सी
ठंड़ी बयार सी
नफरत में प्यार सी
मां
धूप में साया सी
मोहमयी माया सी
गहराई में सागर सी
प्यार भरी गागर सी
मां
दुर्दिन अपार में
निर्दयी संसार में
कष्टों की मार में
दया और दुलार सी
मां
बच्चों की जान सी
दीन और ईमान सी
घर के कल्याण सी
धरती में भगवान सी
मां
बहुत सुन्दर ..
जवाब देंहटाएंधन्यवाद कविता जी मेरे विचारों को पसंद करने के लिए। मैं मानता हूं कि धरती में मां का स्थान भगवान से कम नहीं।-राजेश त्रिपाठी
हटाएंधन्यवाद कविता जी मेरे विचारों को पसंद करने के लिए। मैं मानता हूं कि धरती में मां का स्थान भगवान से कम नहीं।-राजेश त्रिपाठी
हटाएंबैसाखी और अम्बेदकर जयन्ती की हार्दिक मंगलकामनाओं के आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार (14-04-2015) को "सब से सुंदर क्या है जग में" {चर्चा - 1947} पर भी होगी!
जवाब देंहटाएं--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद शास्त्री जी। आशीर्वाद बनाये रखिएगा यही विनती है।
हटाएंधन्यवाद शास्त्री जी। आशीर्वाद बनाये रखिएगा यही विनती है।
हटाएंसुंदर रचना आभार सर आप का... काफी समय बाद रचना दी है इस मंच पर...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद कुलदीप जी। कुछ उलझनें, कुछ स्वजन विछोह के चलते सब कुछ अव्यवस्थित था, जीवन में व्यतिक्रम आया इसलिए कुछ दिनों तक कुछ लिख नहीं पाया। अब कोशिश रहेगी कि इस मंच पर आता रहूं। आपके सबके प्यार के लिए आभार।
हटाएंसुंदर रचना. ....
जवाब देंहटाएंआपका ब्लॉग मुझे बहुत अच्छा लगा, और यहाँ आकर मुझे एक अच्छे ब्लॉग को फॉलो करने का अवसर मिला. मैं भी ब्लॉग लिखता हूँ, और हमेशा अच्छा लिखने की कोशिस करता हूँ. कृपया मेरे ब्लॉग पर भी आये और मेरा मार्गदर्शन करें.
http://hindikavitamanch.blogspot.in/
http://kahaniyadilse.blogspot.in