ब्लौग सेतु....

31 दिसंबर 2015

शुभ नव वर्ष ..........हितेश कुमार शर्मा

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नव- प्रभात, नव-दिवस,  ,  नव -वर्ष 
शरद ऋतू ,वसुंधरा की छटा निराली 
मन मयूर प्रफुल्लित करती शीतल पवन 
कलरव करते पक्षी , फैली चहुँ ओर हरियाली 
श्यामल श्वेत बदली की चादर ओढ़  धरा 
सूर्य की प्रथम किरण नव सन्देश लिए 
शुभ  स्वागत  हेतु  प्रकृति  खड़ी  
ज्यों प्रीतम के लिए प्रियतमा प्रति- क्षण जिये 
दूर क्षितिज पर गगन  झुका  धरा  पर 
प्रेम  रसपान   की  करता  अभिलाषा 
धरा  गगन  के  अनुपम  मिलन   से   
पूर्ण होती श्रृंगार - रस  की नई परिभाषा 
शीतल मंद वायु में अपनी सुगंध मिलाते 
पुष्प  पराग  सदा  भँवरे  हैं  पीते 
सदैव  प्रसन्न चित  ,करते  मधु पान 
पर  पुष्प  सदा   काटों  में  हैं  जीते 
उड़ते  पंख  दूर नीलगगन  में 
ज्यों  धरती  की  शोभा  बढ़ाये 
है  हित इच्छा कि  आपके जीवन में 
सदैव  खुशियों  की  फसल  लहराए 
नव वर्ष की इस मंगल  बेला  पर 
मुझ संग प्रकृति दे रही बधाई सन्देश है
बीते  वर्ष  कोई  भूल  हुई हो  अगर 
तो विनम्र  क्षमा प्रार्थी  हितेश  है

29 दिसंबर 2015

उम्मीद नए साल की ..................हितेश कुमार शर्मा

                                                                                           
लो यू  ही एक और  साल  हो  गया  व्यतीत 
और  बढ़  चला  है  आप  अपना  अतीत 
हर  साल  इक  नया  साल  आता  ही  रहेगा 
इच्छाओं का दीपक हर दिल मे जलता ही  रहेगा 
बूँद - बूँद मिलकर यादो का  सागर  बनता  रहेगा 
साहिल मन अब और कितने तुफानो को और सहेगा 
शायद पुराने रिश्तो की आग को कोई अब हवा दे  
बुझी हुई चिंगारी की राख कोई अब दिल से हटा दे 
दिल के अँधेरे मे चाहत की रौशनी हो तो बात बने 
कोई इस दिल मे आन बसे तो नए साल की सौगात बने 
नया साल आया और पुराना गया, ये तो अक्सर होता है 
पर हर साल उम्मीद टूटना, दिल मे नस्तर चुभोता है 
मिलन की हरियाली से ये साल सदाबहार बने 
खुशियों के खरीददारों से, खुशहाल सारा बाजार बने 
करो दुआ सब,  कि चाहत के फूल हर दिल मे खिले 
नए साल पर सब नफरत भूल,  प्रेम से गले मिले 

25 दिसंबर 2015

तलाश जारी है -- साधना वैद :)


ढूँढ रही हूँ इन दिनों
अपना खोया हुआ अस्तित्व
और छू कर देखना चाहती हूँ
अपना आधा अधूरा कृतित्व
जो दोनों ही इस तरह
लापता हो गये हैं कि
तमाम कोशिशों के बाद भी
कहीं मिल नहीं रहे हैं,
और उनकी तलाश में हलकान
मेरी संवेदनाएं इस तरह
संज्ञाशून्य हो गयी हैं कि
भावनाओं के कुसुम
लाख प्रयत्नों के बाद भी
किसी शाख पर अब
खिल नहीं रहे हैं !  
आस-पास हवाओं में बिखरी
तमाम आवाज़ों में
मेरा नाम भी खो गया है
और घर के तमाम पुराने
टूटे फूटे जर्जर सामान के बीच
मेरा कृतित्व भी कहीं
घुटनों में पेट दिए
गहरी नींद में सो गया है !
कल फिर से कोशिश करूँगी
शायद रसोईघर में साग सब्जी
काटती छीलती छौंकती बघारती
आटा गूँधती रोटियाँ बनाती या फिर
स्कूल में छुट्टी के वक्त
एक हाथ से बच्चों का हाथ थामे
और दूसरे हाथ में बच्चों का
भारी बैग उठाये जल्दी जल्दी
गेट के बाहर निकलने को आतुर
स्त्रियों की भीड़ में
मुझे मेरा चेहरा दिख जाए,
और बच्चों की किसी पुरानी कॉपी के
खाली पन्नों पर या
घर के हिसाब की डायरी के
पिछले मुड़े तुड़े पन्ने पर मुझे मेरा
कृतित्व कहीं मिल जाए !
रात बहुत हो गयी है
आप भी दुआ करिये कि
मेरी यह तलाश कल
ज़रूर खत्म हो जाए
और मेरे आकुल व्याकुल
हृदय को थोड़ा सा चैन तो
ज़रूर मिल जाए !  


21 दिसंबर 2015

मेरे गिरधर कृष्ण मुरारी (भजन) ........हितेश कुमार शर्मा


                                                                    
                                                                                  
तेरे  चरनन  पर  बलिहारी 
मेरे  गिरधर  कृष्ण  मुरारी 
कृपा तेरी का बनु मैं अधिकारी 
मेरे  गिरधर  कृष्ण  मुरारी 
तेरे  दर्शन  का  मैं  अभिलाषी 
इस मन को बना दो  काशी 
तुम दाता मेरे,  मै तेरा भिखारी 
मेरे  गिरधर  कृष्ण  मुरारी 
कइयों  को  तुमने  है  तारा 
भवसागर  पार  उतारा 
कब आएगी अब  मेरी  बारी 
मेरे  गिरधर  कृष्ण  मुरारी 
झूठी  ये  मोह  और  माया 
अपनी  कृपा की करदो  छाया 
तुम  ही  हो  सच्चे  हितकारी 
मेरे  गिरधर  कृष्ण  मुरारी 
मुझ  दीन   को  तेरा  सहारा 
मैं  मझदार , तुम  हो  किनारा 
दया सागर हो तुम मेरे बनवारी 
मेरे  गिरधर  कृष्ण  मुरारी 
अंत समय की हो जब बेला 
और अपनों का लगा हो  मेला 
तब तुम पकड़ना बांह हमारी 
मेरे  गिरधर  कृष्ण  मुरारी 
तेरे  चरनन  पर  बलिहारी 
मेरे  गिरधर  कृष्ण  मुरारी 
कृपा तेरी का बनु मैं अधिकारी 
मेरे  गिरधर  कृष्ण  मुरारी