ब्लौग सेतु....

28 अप्रैल 2016

वृंदावन की ओर (भजन)


रीवाज पाल रखी..

लोगो ने ये कौन सी

ऱीवाज पाल रखी

जहाँ खुद की

पाकीजगी साबित

करने की चाह में

दूसरो को गिराना पडा,

मसाइबो की क्या कमी 

खुद की रयाजत और

उसके समर की है आस..

रफाकते भी चंद दिनो की

पर मुजमहिल इस कदर कि

मैं हि मैं हूँ।

न जाने

वो इख्लास की
  
छवि गई कहाँ

जहाँ अजीजो की

भी थी हदें

खुदी की जरकार

साबित  करने की चाह  में

लोगो ने ये कौन सी

रिवाज़  पाल रखी है

इक हक़ीक़त ऐसी

जिससे  नज़रे भी

बचती  और बचाती है..  

           पम्मी 

26 अप्रैल 2016

II आओ चलो खो जाएँ II

                                                                  जलधि की तरंग  में 
जीवन की उमंग  में 
फूलों  के  रंग  में 
प्रीतम  के  संग  में 
II आओ चलो खो जाएँ  II
मधुर  संगीत  में 
प्यार  के  गीत  में 
दिल  के  मीत  में 
अपनों  की  जीत में 
II आओ चलो खो जाएँ  II
सैनिकों के बलिदान में 
बच्चों की मुस्कान  में 
गीता  के  ज्ञान  में 
भारत  महान  में 
II आओ चलो खो जाएँ  II
स्वदेश के  प्यार  में 
चाँद  के  दीदार  में 
दूसरों के परोपकार में 
सात्विक  आहार  में 
II आओ चलो खो जाएँ  II
सब  की  भलाई  में 
देश  की  सफाई  में 
जीवन की सच्चाई में 
समझ की गहरायी में 
II आओ चलो खो जाएँ  II
प्रकृति की सुरक्षा  में 
निर्बल  की  रक्षा  में 
सच्चाई की परीक्षा में 
जीवन  के  लक्ष्य  में 
II आओ चलो खो जाएँ  II

24 अप्रैल 2016

🌹  वह🌹

खामोशी के सागर में,

              मुस्कान कंकड़ डाल |

खुशियों की लहरें,

             बना जाता है वह |

भुलाना चाहूँ, तो भी,

        भूल से याद आ जाता है वह |

दुनियाँ के दरिया मे,

        टुटी नैया पर सवार हूँ मै,

टुटी नैया मे,

  अहं की छोटी पतवार हूँ  मै.

     फिर भी  अहं को भूला कर मेरे,

सन्मार्ग मुझे दिखा जाता है वह |

भूलाना चाहूँ तो भी,

भूल से याद आ जाता है वह |

भूल तो जाउँ उसे पर,

कैसे भुलाउँ उपकार उसका |

समीर  उसकी, नीर  उसका |

मुफ्त मे, प्राण चेतना,

सबको दे जाता है वह.  |

             भूलाना चाहूँ तो भी,

भूलकर याद आ जाता है वह |
   
                जी. एस. परमार
              खानखेड़ी नीमच म. प्र. 

20 अप्रैल 2016

सच मेरा ख्वाब हो जाये (ग़ज़ल)

                                                                     
                                                                                खुदा कसम अगर वो बेनकाब हो जाये 
बरसो पुराना सच मेरा ख्वाब हो जाये 
एक बार जो छू ले वो बहते दरिया का पानी 
तो सारे के सारे समंदर भी शराब हो जाये 
इनायत उनकी निगाहों की जो हो मुझ पर 
मेरे सारे सवाल खुद ही जबाब हो जाये 
वो ठंडी आह ही भरें जो किसी की खातिर 
तो दिलजला आफताब भी महताब हो जाये 
मेरी दीवानगी की हद्द बस तेरी झलक तक है 
पर वो झलक एक बार लाजबाब हो जाये 
नहीं तुझे हासिल करना है हितेश का मक़सद 
तेरी यादें ही मेरी जिंदगी की किताब हो जाये 

18 अप्रैल 2016

गजल

आप ही बतलाइए
राजेश त्रिपाठी
किस कदर तब रिश्ते निभेंगे आप ही बतालाइए।
जब स्वार्थ दिल में पलेंगे आप ही बतलाइए।।

जिंदगी में दिल से बढ़ कर  हो गयी  दौलत अभी।
नाते-रिश्ते इस जहां के जब इसी पर टिके हैं अभी।।
होठों पर नकली मुसकानें,  दिल में नकली प्रीति ।
नकली चेहरा सामने रखते जग की यह है  रीति।।

ऐसे में  सच क्या  पनपेगा आप  ही बतलाइए ।
जब स्वार्थ ही दिल में पलेंगे आप ही बतलाइए।।

झोंपड़ी में है अंधेरा और कोठी मे  दीवाली है।
कोई मालामाल तो  कोई दामन ही खाली है।।
धरती  पर  जन्नत  जैसी कोई जिंदगानी है।
कोई बस मुसलसल इक गुरबत की कहानी है।।

ऐसे में कोई क्या करे आप ही बतालाइए।
जब स्वार्थ दिल में पलेंगे आप ही बतलाइए।।

रो रही सीताएं यहां दुष्टो के रावण राज में।
किस कदर हाहाकार है अब के समाज  में।।
कुछ लोग निशिदिन चल रहे ऐसी चाल हैं।
देश की आबादी जिससे बेतरह बेहाल  है।।

रंजोगम कैसे मिटेंगे आप ही बतलाइए।
जब स्वार्थ ही दिल में पलेंगे आप ही बतलाइए।।

जिंदगी जिनके लिए बोझ-सी है बन गयी।
मुसीबतों की कमाने गिर्द जिनके तन गयीं।।
कोई राहतेजां नहीं कोई किनारा है नहीं।
इन मजलूमों का यहां कोई सहारा है नहीं।।

ये जहां में कैसे जीएं आप ही बतलाइए।
जब स्वार्थ ही दिल में पलेंगे आप ही बतलाइए।।







6 अप्रैल 2016

नयी दुनिया

                                                                                    न  भूले तुम , न  भूले  हम 
मोहब्बत किसी की न थी कम 
दुनिया के झूठे रीति - रिवाजो ने 
धर्म से निकले अल्फाजों ने 
इस जहाँ से हमें मिटा दिया 
उसे दफनाया,  मुझे जला दिया 
जिंदगी की बेवफाई समझ में आई 
दी जाती जहाँ धर्मो की दुहाई 
अजीब है दुनिया का  कायदा 
खुदा  भी  बांटा  आधा  आधा 
लेकिन हम मर कर भी जिन्दा है 
खुले आस्मां के आज़ाद परिंदा  है 
जहाँ एक धरती एक है आसमान 
नहीं जहाँ धर्मो  के हैं निशान 
मस्जिद भी मेरी मंदिर भी  मेरा 
अब हर घर पर है अपना बसेरा 
खुश हैं इस दुनिया अंजान में 
नहीं उलझता कोई गीता -कुरान में 
सुर नहीं था जीवन के तरानों में 
अपनापन मिला जाकर बेगानो में 
बादलों के बीच लगता फेरा अपना 
हर सांझ अपनी हर सवेरा अपना 
अब न कोई गम, न कोई सितम 
नयी दुनिया का एक ही नियम 
  भूले  तुम , न  भूले  हम 
मोहब्बत किसी की न थी कम