वो जो अक्सर फजर से उगा करते है
सुना है बहुत दिल से धुआं करते है।
जलता है इश्क या खुद ही जल जाते है
कलमे में खूब चेहरे पढा करते है।
फजल की बात पर खामोशी थमा देते है
बेवजह ही क्यों खुद को खुदा करते है?
आयतें रोज ही लिखते है मदीने के लिए
और अक्सर मगरिब में डूबा करते है
मेरी रुह तक आती है लफ्जों की आहट
मुद्दतों से जो ऐसे जख्म लिखा करते हैं।।
पारुल
Rhythmofwords.blogspot.com
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (13-05-2018) को "माँ के उर में ममता का व्याकरण समाया है" (चर्चा अंक-2969) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वो जो अक्सर फजर से उगा करते है
जवाब देंहटाएंसुना है बहुत दिल से धुआं करते है।
....क्या बात है?
बहुत कमल के शेर ...
जवाब देंहटाएंदिल में सीधे उतर जाते हैं ...
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएं