ब्लौग सेतु....

13 जून 2014

एक गज़ल



नजारों में वो बात न थी
वो लमहे जब तू मेरे पास न थी।
ज्यों जिंदगी मेरे पास न थी।।
यों बहारें थीं समां सुहाना था।
तेरे बगैर नजारों में वो बात न थी।
ख्वाबों की महफिल उदास थी।
नगमें सभी थे ज्यों खोये हुए।।
हम तेरी याद में जागा किये।
अश्कों से दामन भिगोये हुए।।
तुम गयी  याद तो साथ थी।
जिसके सहारे कटे रात-दिन।
तेरी फुरकत* में ओ बेवफा।
दिन गुजरे पल-छिन गिन-गिन।।
जालिम थी तेरी तिरछी नजर।
वो पड़ी तो दिल घायल हुआ।।
तू लाजवाब है लासानी है।
इस बात का कायल हुआ।।
तेरी पायल की रुनझुन।
कंगना की खनक।
आंखों की तेरी निराली चमक।
सब बेमिसाल है बाकमाल है।
इनकी न दूजी मिसाल है।।
तू है तो जिंदगी के हैं मायने।
तू नहीं तो सभी कुछ बेकार है।।
तू जमीं की फसले बहार* है।
तू सरापा* बस प्यार है प्यार है।।

पड़ जायें जहां नाजुक कदम।
जिंदगी झूम कर गाने लगे।।
खिजां में बहारें हंसने लगें।
गमजदा शख्स मुसकाने लगे।।
तेरे हुस्न का ऐसा कमाल है।
हर तरफ बस इसका जमाल है।।
नयन तेरे बिन बेचैन हैं।
दीदार का बस सवाल है।।
तू जो आये करार आ जाये।
जिंदगी में बहार आ जाये।।
तेरी नफरत भी ऐसी है।
इस नफरत पे प्यार आ जाये।।
      -राजेश त्रिपाठी
फुरकत*= जुदाई, विछोह
फसले बहार*= वसंत ऋतु
सरापा* सर से पैर तक



2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूबसूरत अहसास.... स्नेह में भीगी सुन्दर रचना

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    1. भास्कार जी धन्यवाद, आभार, आपसे जैसे सुधी-गुणग्राहकों के प्रोत्साहन से ही सजा-संवरा है हमारा रचना संसार।।

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