हो जाए ऐसा खुदा न खास्ता तो
याद आये भूला हुआ रास्ता तो
नींदों में हमें है चलने कि आदत
अगर शिद्दत से वो पुकारता तो
खामोशियों को जुबां हमने जाना
कयामत ही होती गर बोलता तो
होता यूँ के टूटते बस भरम ही
गर जाते में उसको टोकता तो
उसी कि नजर का जवाब हम थे
आईने में खुद को निहारता तो
मर के भी मैं जी उठूंगा शायद
दिया अपना जो उसने वास्ता तो
shurkriya meri rachna ko yahan sthaan ke liye ... aapke vinti hai rachna kar ke naam k saath uske blog ka naam bhi jod den to jyada suvidha rahega. Abhaar !
जवाब देंहटाएंVnadna ji rachna ke niche aapka naam aur link hai ji
हटाएंबेहद खूबसूरत ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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