ब्लौग सेतु....

27 अक्टूबर 2014

ढलता हुआ सूरज नहीं देखा -- सदा जी


खोजते थे तुम पल कोई ऐसा 
जिसमें छिपी हो 
कोई खुशी मेरे लिए 
मैं हंसती जब भी खिलखिलाकर 
तुम्‍हारे लबों पर 
ये अल्‍फ़ाज होते थे 
जिन्‍दगी को जी रहा हूं मैं
ठिठकती ढलते सूरज को देखकर जब भी 
तो कहते तुम 
रूको एक तस्‍वीर लेने दो 
मैं कहती 
कभी उगते हुए सूरज के साथ  भी
देख लिया करो मुझे 
चिडि़यों की चहचहाहट  
मधुरता साथ लाती है 
तुम झेंपकर 
बात का रूख बदल देते थे 
कुछ देर ठहरते हैं 
बस चांद को आने दो छत पे 
जानते हो 
वो मंजर सारे अब भी 
वैसे हैं 
मेरी खुशियों को किसी की 
नजर लग गई है 
मैने बरसों से  
ढलता हुआ सूरज नहीं देखा ... !!



5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (28-10-2014) को "माँ का आँचल प्यार भरा" (चर्चा मंच-1780) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच के सभी पाठकों को
    छठ पूजा की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. अक्सर ढ़लता सूरज जीवन के आँगन में कई यादें छोड़ जाता है
    और इन यादों में किसी का इन्तजार ....

    साभार !

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  3. आपकी कलम की चमक को दुनियां देखें
    http://savanxxx.blogspot.in

    जवाब देंहटाएं

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