ब्लौग सेतु....

4 अक्टूबर 2014

      साथी था अब अजनबी है-सुरेन्द्र भुटानी




मुल्क का मुल्क ही  अपनी यादाश्त खो बैठा है यहां
अब जो खिलाडी आया है वो अपना खेल दिखायेगा
तुम भी अपने दिलो-दिमाग़ की खिड़कियां बंद कर लो
वक़्त नहीं वक़्त का साया है तुम से क्या मेल बढ़ायेगा
ये मौसमी ना'रे हैं इनकी भी इक मीयाद होगी आखिर
फिलहाल साँसों के सिवा सब हमसफ़र तो छूट गये 
हर सुबह बदलता रहेगा ये ज़माना नित नए रंग अपने 
शोरीशे-हस्ती का इक  बहाना है सब रहबर तो लूट  गये
ले उडा  तमाम नींदें ,क्या ख़्वाब की ता'बीर देखोगे
सर-चश्मा-ए -ज़ुल्मत में अब  खुर्शीद की आमद क्या
रुदादे -ग़मे-वफ़ा से  लोगों के अफ़साने जुड़ते जायेंगे
झूठी चमक की शोहरत में अब  हुस्ने-दीद की आमद क्या
एक अजब सा खौफ बना रहेगा, अब ऐसी ही  दुश्वारी है
नीम सी कड़वी  बातों पे तुम्हे  अपने तंज़ करते रहना है
तुम अपने हो कर फिर अजनबी बने, ये रीत तो पुरानी है
गल्त वक़्त की मुलाक़ातों पे तुम्हे अपने तंज़ करते रहना है

5 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छी प्रस्तुति। "रुदादे -ग़मे-वफ़ा से लोगों के अफ़साने जुड़ते जायेंगे
    झूठी चमक की शोहरत में अब हुस्ने-दीद की आमद क्या " बहुत सुन्दर पक्तियाँ। स्वयं शून्य

    जवाब देंहटाएं
  2. sundar rachana ke liye badhayee.

    शादी शुदा लोगो से छमा चाहता हूँ उनकी कुछ बाते शेयर कर रहा हूँ . लेकिन अब मुझसे उनका दर्द देखा नहीं जाता है और अपने कुछ युवा मित्रो से जिन्होंने अभी शादी नहीं की है उनसे ये अपील करता हूँ की जितनी जल्दी हो ये पोस्ट अपने मित्रो के साथ शेयर करे हो सकता है की उनकी जिन्दगी सुधर जाये !
    एक आदमी ने अपना दर्द कुछ इस शब्दों में बयां किया !

    http://hindikavitamanch.blogspot.in/2014/10/blog-post.html

    Please visit here also for more Hindi poems.
    http://rishabhpoem.blogspot.in/

    जवाब देंहटाएं

स्वागत है आप का इस ब्लौग पर, ये रचना कैसी लगी? टिप्पणी द्वारा अवगत कराएं...