आज कलानिधि दिखे गगन में
शीतल, शुभ्र ज्योत्स्ना फ़ैली,
अम्बर और अवनि आँगन में
शक्ति, शांति का सुधा कलश,
उलट दिया प्यासी धरती पर
मदहोश हुए जन जन के मन,
उल्लसित हुआ हर कण जगती पर
जब आ टकरायीं शुभ्र रश्मियाँ,
अद्भुत, दिव्य ताज मुख ऊपर
देदीप्यमान हो उठी मुखाभा,
जैसे, तरुणी प्रथम मिलन पर
कितना सुखमय क्षण था यह,
जब औषधेश सामीप्य निकटतम
दुःख और व्याधि स्वतः विच्छेदित,
कर अनन्य आशिष अनुपम।
- श्रीप्रकाश शुक्ल
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 26 अक्टूबर 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब कहा है इन पंक्तियों में ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ...
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (24-10-2015) को "क्या रावण सचमुच मे मर गया" (चर्चा अंक-2139) (चर्चा अंक-2136) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुंदर
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