ब्लौग सेतु....

27 अक्टूबर 2015

हश्र ......संगीता स्वरुप ( गीत )




ज़र्द पत्तों की तरह
सारी ख्वाहिशें झर गयी हैं
नव पल्लव के लिए
दरख़्त बूढ़ा हो गया है
टहनियां भी अब
लगी हैं चरमराने
मंद समीर भी
तेज़ झोंका हो गया है
कभी मिलती थी
छाया इस शज़र से
आज ये अपने से
पत्र विहीन हो गया है
अब कोई पथिक भी
नहीं चाहता आसरा
अब ये वृक्ष खुद में
ग़मगीन  हो गया है
ये कहानी कोई
मेरी तेरी नहीं है
उम्र के इस पड़ाव पर
हर एक का यही
हश्र हो गया है ।

साभार लिंक...http://geet7553.blogspot.in/2014/05/blog-post.html

8 टिप्‍पणियां:

  1. वक्त बदलते देर नहीं लगती ..हालात एक जैसे कही नहीं रहते ........

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  2. उम्र के इस पड़ाव को भी खूबसूरत बनाया जा सकता है..कैसे ? यही तो जीवन है

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