सूरत बदल गई कभी सीरत बदल गई।
इंसान की तो सारी हक़ीक़त बदल गई।
पैसे अभी तो आए नहीं पास आपके,
ये क्या अभी से आप की नीयत बदल गई।
मंदिर को छोड़ "मयकदे" जाने लगे हैं लोग,
इंसा की अब तो तर्ज़े-ए-इबादत बदल गई।
खाना नहीं ग़रीब को भर पेट मिल रहा,
कैसे कहूँ गरीब की हालत बदल गई।
नफ़रत का राज अब तो हर सू दिखाई दे,
पहले थी जो दिलों में मुहब्बत बदल गई।
देता न था जवाब जो मेरे सलाम का,
वो हँस के क्या मिला मेरी किस्मत बदल गई।
संजय कुमार गिरि
sanjaygiri75@gmail.com
आपकी लिखी रचना, "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 18 जनवरी 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंSundar prastutui .
जवाब देंहटाएंyour most welcome to my blog.
http://iwillrocknow.blogspot.in/
पैसे अभी तो आए नहीं पास आपके,
जवाब देंहटाएंये क्या अभी से आप की नीयत बदल गई।
बहुत खूब!