चंद कदम भर साथ तुम रहे,
संग चल कर हमसफर न हुए,
पग पग वादा करते ही रहे,
होकर भी एक डगर न हुए ।
तेरी बातें सुन हँसती हैं आँखें,
खुशबू से तेरी महकती सांसे,
दो होकर भी एक राह चले थे,
संग चल कर हमसफर न हुए,
एक ही गम पर झेल ये रहे,
होकर भी एक हशर न हुए ।
फिर से तेरी याद है आई,
पास में जब है इक तन्हाई,
भ्रम में थे कि हम एक हो रहे,
संग चल कर हमसफर न हुए,
अच्छा हुआ जो भरम ये टूटा,
होकर भी एक नजर न हुए ।
दिल में दर्द और नैन में पानी,
अश्क कहते तेरी मेरी कहानी,
यादें बन गये वो चंद लम्हें,
संग चल कर हमसफर न हुए,
धरा रहा हर आस दिलों का,
होकर भी एक सफर न हुए ।
-प्रदीप कुमार साहनी
बेहतरीन
जवाब देंहटाएंधरा रहा हर आस दिलों का,
होकर भी एक सफर न हुए ।
सादर
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 11 जनवरी 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंजय मां हाटेशवरी...
जवाब देंहटाएंआपने लिखा...
कुछ लोगों ने ही पढ़ा...
हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें...
इस लिये दिनांक 11/01/2016 को आप की इस रचना का लिंक होगा...
चर्चा मंच[कुलदीप ठाकुर द्वारा प्रस्तुत चर्चा] पर...
आप भी आयेगा....
धन्यवाद...
उम्दा रचना
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