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19 सितंबर 2016

‘ मेरा हाल सोडियम-सा ’ [ लम्बी तेवरी, तेवर-शतक ] +रमेशराज




‘ मेरा हाल सोडियम-सा ’ 

[ लम्बी तेवरी, तेवर-शतक ]

+रमेशराज 
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इस निजाम ने जन कूटा  
हर मन दुःख से भरा लेखनी । 1

गर्दन भले रखा आरा
सच बोलूंगा सदा लेखनी ।

मैंने हँस-हँस जहर पिया 
 मैं ‘मीरा-सा’ रहा लेखनी । 3

मेरा स्वर कुछ बुझा-बुझा   
मैं मुफलिस की सदा लेखनी । 4

मेरे हिस्से में पिंजरा
तड़पे मन का ‘सुआ’ लेखनी । 5

मेरा ‘पर’ जब-जब बाँधा   
आसमान को तका लेखनी । 6

मन के भीतर घाव हुआ   
मैं दर्दों से भरा लेखनी । 7

आदमखोरों से लड़ना
तुझको चाकू बना लेखनी । 8

शब्द-शब्द आग जैसा
कविता में जो रखा लेखनी । 9

छल सरपंच बना बैठा
इस पै अँगुली उठा लेखनी । 10

जो सोया भूखा-प्यासा   
उसको रोटी जुटा लेखनी । 11

हर मन अंगारे जैसा   
तू दे थोड़ी हवा लेखनी । 12

इसका दम्भ तोड़ देना   
ये है खूनी किला लेखनी । 13

तुझसे जनमों का नाता   
तू मेरी चिरसखा लेखनी । 14

मुझको क्रान्ति-गीत गाना   
मैं शायर सिरफिरा लेखनी । 15

मुझमें क्रान्ति-भरा किस्सा   
मुझको आगे बढ़ा लेखनी । 16

मुझमें डाइनामाइट-सा
इक दिन दूंगा दिखा लेखनी । 17

सच हर युग ऐसा धागा
जिसने हर दुःख सिया लेखनी । 18

कुम्भकरण जैसा सोया
तू विरोध को जगा लेखनी । 19

मुझ में जोश तोप जैसा  
तू जुल्मी को उड़ा लेखनी । 20

‘सोच’ आग-सा धधक रहा  
मन कंचन-सा तपा लेखनी । 21

ये ख़याल मन उभर रहा   
मैं रोटी, तू तवा लेखनी । 22

जिबह कबूतर खुशियों का  
पंखों को फड़फड़ा लेखनी । 23

सिसके निश-दिन मानवता   
शेष नहीं कहकहा लेखनी । 24

हर कोई बस कायर-सा  
बार-बार ये लगा लेखनी । 25

यहाँ बोलबाला छल का  
सबने सबको ठगा लेखनी । 26

खामोशी से कब टूटा
शोषण का सिलसिला लेखनी । 27

खल पल-पल कर जुल्म रहा   
इसके चाँटे जमा लेखनी । 28

घर के आगे ‘क्रान्ति’ लिखा   
मेरा इतना पता लेखनी । 29

जिन पाँवों में कम्पन-सा   
बल दे, कर दे खड़ा लेखनी । 30

‘झिंगुरी’ को गाली देता
क्रोधित ‘होरी’ मिला लेखनी । 31

मैंने ‘गोबर’ को देखा
नक्सलवादी हुआ लेखनी । 32

‘धनिया’ ने ‘दाता’ पीटा  
दिया मजा है चखा लेखनी । 33

खूनी उत्सव रोज हुआ   
ये कैसी है प्रथा लेखनी । 34

घुलता साँसों में विष-सा   
कैसी है ये हवा लेखनी । 35

महज पतन की ही चर्चा   
सामाजिक-दुर्दशा लेखनी । 36

जन चिल्ला-चिल्ला हारा   
बहरों की थी सभा लेखनी । 37

अपने को नेता कहता
जो साजिश में लगा लेखनी । 38

वही आज संसद पहुँचा   
जो गुण्डों का सगा लेखनी । 39

सुख तो एक अदद लगता  
दर्द हुआ सौ गुना लेखनी । 40

धर्मराज फिर से खेला   
आदर्शों का जुआ लेखनी । 41

जो मक्कार और झूठा
वो ही हर युग पुजा लेखनी । 42

राजा रसगुल्ले खाता
भूखी है पर प्रजा लेखनी । 43

जज़्बातों से वो खेला
सबका बनकर सगा लेखनी । 44

सुन वसंत तब ही आया   
पात-पात जब गिरा लेखनी । 45

मुझमें ‘दुःख’ ऐसे तनता   
मैं फोड़े-सा पका लेखनी । 46

कैसे कह दूँ अंगारा
जो भीतर तक बुझा लेखनी । 47

मेरा हाल ‘सोडियम’-सा   
मैं पानी में जला लेखनी । 48

भले आज तम का जल्वा   
लेकिन ये कब टिका लेखनी । 49

कैसा नाटक रचा हुआ 
लोग रहे सच छुपा लेखनी । 50

उसका अभिनंदन करना   
जो अपने बल उठा लेखनी । 51

जन के लिये न्याय बहरा   
चीख-चीख कर बता लेखनी । 52

जिनको भी अपना समझा   
वे करते सब दगा लेखनी । 53

अनाचार से नित लड़ना  
फड़क रही हैं भुजा लेखनी । 54

अंधकार कुछ तो टूटा   
बार-बार ये लगा लेखनी । 55

तू चलती, लगता चलता
साँसों का सिलसिला लेखनी । 56

जीवन-भर संघर्ष किया   
मैं दर्दों में जिया लेखनी । 57

और नहीं जग में तुझ-सा   
जो दे उत्तर सुझा लेखनी । 58

कैसे सत्य कहा जाता
सीख तुझी से लिया लेखनी । 59

उन हाथों में अब छाला
कल थी जिन पै हिना लेखनी । 60

चक्रब्यूह ये प्रश्नों का 
अभिमन्यु मैं, घिरा लेखनी । 61

आकर मन जो दर्द बसा   
कब टाले से टला लेखनी । 62

मन तहखानों में पहुँचा   
जब भी सीढ़ी चढ़ा लेखनी । 63

टुकड़े-टुकड़े महज रखा   
नेता ने सच सदा लेखनी । 64

छल स्वागत में खड़ा मिला  
जिस-जिस द्वारे गया लेखनी । 65

जिसमें प्रभा-भरा जज़्बा 
वह हर दीपक बुझा लेखनी । 66

जिसको सच का नभ छूना  
पाकर खुश है गुफा लेखनी । 67

‘बादल देगा जल’ चर्चा 
मौसम फिर नम हुआ लेखनी । 68

पग मेरा अंगद जैसा
अड़ा जहाँ, कब डिगा लेखनी । 69

प्रस्तुत उनको ही करना 
जिन शब्दों में प्रभा लेखनी । 70

मुंसिफ के हाथों देखा   
अदालतों में छुरा लेखनी । 71

शान्तिदूत खुद को कहता   
हमें खून वो नहा लेखनी । 72

सबको पंगु बना बैठा
 ये पश्चिम का नशा लेखनी । 73

न्याय-हेतु थाने जाना 
जो चोरों का सगा लेखनी । 74

अनाचार बनकर बैठा   
ईमानों का सखा लेखनी । 75

सच जब भी शूली लटका   
‘भगत सिंह’-सा हँसा लेखनी । 76

मल्टीनेशन जाल बिछा
जन कपोत-सा फँसा लेखनी । 77

घर-घर में पूजा जाता
सुन बिनलौनी-मठा लेखनी । 78

नयी सभ्यता का पिंजरा
इसमें खुश हर सुआ लेखनी । 79

जिसमें दम सबका घुटता   
 भाती वो ही हवा लेखनी । 80

मृग जैसा मन भटक रहा   
ये पश्चिम की तृषा लेखनी । 81

पल्लू थाम गाँव पहुँचा
महानगर का नशा लेखनी । 82

जिधर  झूठ का भार रखा   
उधर झुकी है तुला लेखनी । 83

आज आस्था पर हमला
मूल्य धर्म का गिरा लेखनी । 84

देव-देव सहमा-सहमा 
असुर लूटते मजा लेखनी । 85

अब रामों सँग सूपनखा   
त्यागी इनने सिया लेखनी । 86

आज कायरों कर गीता   
अजब देश में हवा लेखनी । 87

चीरहरण खुद कर डाला   
द्रौपदि अब बेहया लेखनी । 88

मनमेाहन गद्दी बैठा
किन्तु कंस-सा लगा लेखनी । 89

जहाँ नाचती मर्यादा
डिस्को का क्लब खुला लेखनी । 90

सबको लूट बना दाता   
जो मंचों पर दिखा लेखनी । 91

मानव जब मति से अंधा   
क्या कर लेगा दीया लेखनी । 92

हमने बगुलों को पूजा 
हंस उपेक्षित हुआ लेखनी । 93

छल का रूप साधु जैसा
तिलक! चीमटा! जटा! लेखनी । 94

वह जो वैरागी दिखता   
माया की लालसा लेखनी । 95

नदी निकट बगुला बैठा 
रूप भगत का बना लेखनी । 96

जनहित में तेवर बदला   
चीख नहीं है वृथा लेखनी । 97

हर तेवर आक्रोश-भरा
यह सिस्टम नित खला लेखनी । 98

इन तेवरियों से मिलता   
असंतोष का पता लेखनी । 99

तेवर-तेवर अब तीखा
जन-जन की है व्यथा लेखनी । 100

मन ‘विरोध’ से भरा हुआ
खल के प्रति अति घृणा लेखनी । 101

पूछ न आज तेवरी क्या ?
बनी अग्नि की ऋचा लेखनी । 102
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+रमेशराज, 15/109, ईसानगर, अलीगढ़-202001
Mo.-9634551630 


1 टिप्पणी:

  1. जय मां हाटेशवरी...
    अनेक रचनाएं पढ़ी...
    पर आप की रचना पसंद आयी...
    हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
    इस लिये आप की रचना...
    दिनांक 20/09/2016 को
    पांच लिंकों का आनंद
    पर लिंक की गयी है...
    इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।

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