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8 दिसंबर 2016

हितवाणी -4

कोरे कागज दिल पर , प्रेम लकीर खींच 
मैली गठरी हुई तेरी ,  देख नयन  मीच 
तन मैल धोयी के , उज्जवल दियो  बनाए 
मन दर्पण होये कैसे , कुछ तो करो  उपाय 
वक़्त पहिया चले सदा , देखे ऊंच न नीच 
पर निंदा से मन मैला,  हुई कीच ही  कीच 
मैले मन के मंदिर में , प्रभु  को दियो  बिठाय 
बेआवाज जब लाठी पड़े ,  आगे  कौन  सहाय 
अग्नि तेरी दौलत की , बुझा न सके कोई और 
एक झटका काल का , छिनता अंतिम कौर 
समझ सको तो समझ लो , हितवाणी के बोल 
स्वर्ण सज़ा तन तेरा,  बिकता  फिर  बेमोल 
हितेश कुमार शर्मा 

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